शारदीय नवरात्रि होने वाली है प्रारंभ: माँ दुर्गा नौ दिनों तक करेंगी घरों में वास
आचार्य ओमप्रकाश त्रिवेदी
हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व नवरात्रि देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। इस साल 17 अक्टूबर, शनिवार से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं। संस्कृत शब्द “नवरात्रि” का अर्थ होता है ‘नौ रातें’। नवरात्रि के इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक साल में पांच बार नवरात्रि आते हैं, लेकिन इन सब में से चैत्र और अश्विन यानि शारदीय नवरात्रि को ही मुख्य माना जाता है। शारदीय नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक मनाई जाती है।
शरद ऋतु में आगमन के चलते ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में माता कैलाश पर्वत से उतरकर धरती पर अपने मायके आती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मां की उपासना के नौ दिनों में 2 दिन सोमवार पड़ेगा, जो कि बेहद शुभ माना जा रहा है। मान्यता है कि सोमवार के दिन देवी दुर्गा की उपासना करने से जातक को उसके द्वारा की गई पूजा का कई गुना अधिक फल मिलता है। तो चलिए आपको इस लेख में शारदीय नवरात्रि 2020 से जुड़ी सारी जानकारी देते हैं-
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का पर्व माँ-दुर्गा की पूजा का सबसे शुभ समय माना जाता है। यह पूजा आज से नहीं बल्कि वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से हो रही है, जिसका ज़िक्र हमें पुराणों में देखने को मिलता है। नवरात्रि में देवी के शक्ति-पीठ और सिद्धपीठों पर मेले आदि लगते हैं। माँ दुर्गा के सभी शक्तिपीठों का अलग-अलग महत्व है, लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। कहीं पर लोग माता को वैष्णो देवी के रूप में पूजते हैं, तो कहीं पर चामुंडा रूप में इनकी पूजा की जाती है। नवरात्रि एक ऐसा त्यौहार है, जिसे पूरे भारत के लोग बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। यह भारत के अलग-अलग भागों में अलग-अलग ढंग से मनाई जाती है। गुजरात में इस त्यौहार को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। वहां हर साल नवरात्रि के समय में डांडिया और गरबा का आयोजन होता है। पश्चिम बंगाल में तो दुर्गा पूजा बंगालियों के मुख्य त्योहारों में से एक है।
शारदीय नवरात्रि 2020 तिथियां
दिन | तिथि | माता का स्वरूप |
नवरात्रि दिन 1 – प्रतिपदा | 17 अक्टूबर (शनिवार) | माँ शैलपुत्री (घट-स्थापना) |
नवरात्रि दिन 2 – द्वितीय | 18 अक्टूबर (रविवार) | माँ ब्रह्मचारिणी |
नवरात्रि दिन 3 – तृतीया | 19 अक्टूबर (सोमवार) | माँ चंद्रघंटा |
नवरात्रि दिन 4 – चतुर्थी | 20 अक्टूबर (मंगलवार) | माँ कुष्मांडा |
नवरात्रि दिन 5 – पंचमी | 21 अक्टूबर (बुधवार) | माँ स्कंदमाता |
नवरात्रि दिन 6 – षष्ठी | 22 अक्टूबर (गुरुवार) | माँ कात्यायनी |
नवरात्रि दिन 7 – सप्तमी | 23 अक्टूबर (शुक्रवार) | माँ कालरात्रि |
नवरात्रि दिन 8 – अष्टमी | 24 अक्टूबर (शनिवार) | माँ महागौरी (महा अष्टमी, महा नवमी पूजा) |
नवरात्रि दिन 9 – नवमी | 25 अक्टूबर (रविवार) | माँ सिद्धिदात्री |
नवरात्रि दिन 10 – दशमी | 26 अक्टूबर (सोमवार) | दुर्गा विसर्जन (दशहरा) |
नवरात्रि में हर दिन का है खास महत्व
नवरात्रि के पहले तीनों दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित हैं। इन तीन दिनों में देवी दुर्गा की ऊर्जा और शक्ति की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी-समृद्धि व शांति की देवी, की पूजा करते हैं। सातवें दिन, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य से कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा की जाती है। नौवां दिन नवरात्रि का अंतिम दिन होता है, जिसे महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजा की जाती है।
नवरात्रि की प्रमुख कथा
नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, तो चलिए हम आपको इससे जुड़ी प्रसिद्ध कथा के विषय में बताते हैं- एक बार लंका-युद्ध के समय रावण और प्रभु श्रीराम के बीच लड़ाई चरम पर थी। रावण भी बल में कम नहीं था, इसीलिए अपनी पूरी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए वह वानर सेना को बराबर की टक्कर दे रहा था। तब ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीराम को रावण का वध करने और युद्ध में जीत हासिल करने के लिए चंडी देवी का पूजा कर देवी को प्रसन्न करने को कहा। ब्रह्मा जी के बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन के लिए एक सौ आठ दुर्लभ नील-कमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी तरफ रावण ने भी विजय कामना के लोभ से चंडी का पाठ प्रारंभ किया।
जब इंद्र देव को रावण द्वारा शुरू किए चंडी पाठ की जानकारी हुई, तो उन्होंने पवन देव के माध्यम से यह बात श्रीराम तक पहुँचाई। इधर रावण की मायावी शक्ति से पूजा स्थल से हवन सामग्री में से एक नील-कमल गायब हो गया और पूजा में एक सौ सात कमल के फूल ही बचें। पूजा सामग्री गायब हो जाने के कारण राम जी का संकल्प टूटता नजर आने लगा और उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं देवी चंडी नाराज़ न हो जाएँ।
दुर्लभ नील कमल की तत्काल व्यवस्था लगभग असंभव थी, लेकिन तभी भगवान राम को यह ध्यान आया कि लोग उन्हें ‘कमल-नयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों ना संकल्प पूरा करने के लिए अपनी एक नेत्र वह अर्पित कर दें, जिससे वापस पूजा में एक सौ आठ फूल हो जाए। प्रभु श्री राम ने जैसे ही तूणीर से एक बाण निकाल नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तभी वहां अचानक देवी चंडी प्रकट हुई , और उनके हाथ से बाण लेते हुए कहा- कि हे प्रभु राम मैं आपकी श्रद्धा से प्रसन्न हुई और आपको इस युद्ध में विजय श्री का आशीर्वाद देती हूँ।
वहीं दूसरी तरफ माता को प्रसन्न करने के लिए रावण का भी चंडी पाठ चल रहा था। उसके यज्ञ को संपन्न कराने के लिए अनेकों ब्राह्मण लगे हुए थे। तभी हनुमान जी ने एक ब्राह्मण बालक का रूप धारण किया और यज्ञ करा रहे ब्राह्मणों की सेवा में जुट गए। ब्राह्मणों ने हनुमानजी निस्वार्थ सेवा देखकर उनसे वर माँगने को कहा। यह सुनकर हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक कहा- हे ब्राह्मण देव, यदि आप मेरी सेवा से सच में प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से आप यज्ञ कर रहे हैं, उसका मंत्र का एक अक्षर मेरे कहने से बदल दें। यज्ञ करा रहे ब्राह्मण को इस वर का रहस्य को समझ नहीं आया और उन्होंने तथास्तु कह दिया।
हनुमान जी ने मंत्र में जयादेवी…भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करने को कहा। भूर्तिहरिणी का अर्थ होता है- “प्राणियों की पीड़ा हरने वाली”, लेकिन अक्षर बदलने के कारण वह शब्द ‘करिणी’ हो गया, जिसका अर्थ होता है- “प्राणियों को पीड़ित करने वाली” रावण के यज्ञ में गलत मंत्र के उच्चारण से देवी चंडी नाराज़ हो गईं और उन्होंने रावण का सर्वनाश करवा दिया। इस प्रकार हनुमान जी ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी और जीत प्रभु श्री राम की हुई।
पूजा के दौरान करें इन खास नियमों का पालन
- नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक माता का व्रत रखना चाहिए। अगर किसी कारणवश यह संभव न हो, तो पहले, चौथे और आठवें दिन व्रत ज़रूर रखें।
- इन नौ दिनों में जातक को मां दुर्गा के नाम की ज्योति अवश्य जलानी चाहिए।
- नवरात्रि के दिनों में पूजा स्थल पर माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी और मां सरस्वती के चित्रों की स्थापना कर, उन्हें फूलों से सजाकर उनकी पूजन करें।
- मां दुर्गा की पूजा में तुलसी दल और दूर्वा चढ़ाना मना होता है, इसीलिए इस बात का खास ध्यान रखें।
- माँ दुर्गा की पूजा में दोनों समय लौंग और बताशे का भोग ज़रूर लगाएँ।
- इन दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ ज़रूर करें।
- देवी कवच, अर्ग्लास्त्रोत और कीलकम का पाठ यूँ ही ना करें। इनके साथ एक पाठ अतिरिक्त करना अनिवार्य होता है।
- नौ दिन एक ही मंत्र का जप करें।
- साथ ही मां के मंत्र “‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ “का स्मरण ज़रूर करें।
- पूजा में हमेशा लाल रंग के आसन का उपयोग करें। साथ ही पूजा के समय लाल वस्त्र पहनें और लाल रंग का तिलक भी लगाएँ।
- नवरात्रि के पहले दिन की जाने वाली कलशस्थापना/घट-स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करें और कभी भी कलश का मुंह खुला न रखें।
- ऐसी मान्यता है कि मां को सुबह की पूजा में शहद मिला दूध अर्पित करने और इसे ग्रहण करने से आत्मा और शरीर को बल की प्राप्ति होती है।
आशा करते हैं इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। Om Astro से जुड़े रहने के लिए आप सभी का धन्यवाद ।