कालभैरव जयंती पर जानें इस दिन का महत्व, पूजा-विधि और मंत्र
हिन्दू शास्त्र में काल भैरव को महादेव के रूद्र अवतारों में से, सबसे प्रमुख अवतार माना गया है। यही कारण है कि आज दुनियाभर में कालाष्टमी शिवभक्तों के लिए बेहद पावन दिवस के रूप में मनाई जाती है। हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को ही कालाष्टमी पर्व मनाए जाने का विधान हैं, जिसे कालाष्टमी या काल भैरव जयंती भी कहा जाता है और इस वर्ष 2020 में, ये पावन तिथि 7 दिसंबर, सोमवार के दिन पड़ रही हैं।
काल भैरव के रूप में भगवान शिव के रौद्र अवतार से जुड़ी यूँ तो कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। लेकिन आज हम आपको काल भैरव जयंती की सबसे प्रसिद्ध कथाओं के बारे में बताएंगे, साथ ही हम आपको इस दिन का महत्व और उससे जुड़ी समस्त पूजा विधि व उनके मंत्र भी बताएंगे, ताकि आप उसकी मदद से काल भैरव को खुश कर अपने सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति पा सकें।
काल भैरव जयंती का महत्व
महादेव के रौद्र अवतार काल भैरव को समस्त ब्रह्मांड में समय का प्रणेता भी कहा गया है। जिसमें काल का मतलब “समय” को बताया गया है। मान्यता अनुसार कहा जाता है कि, काल भैरव जिस भी व्यक्ति की आराधना से खुश हो जाते हैं तो, उस व्यक्ति के ऊपर से वो हर संकट हरते हुए, उसके बुरे काल को भी भाग्य में बदलने की क्षमता रखते हैं।
शास्त्रों में भी काल भैरव की पूजा-अर्चना करना, जीवन में समृद्धि पाने के लिए बेहद आवश्यक माना है। कहा गया है कि, जो भी व्यक्ति काल भैरव की कृपा पा लेता हैं तो, उसे काल व मृत्यु का भय भी भयभीत नहीं कर पाता।
इनकी आराधना से जीवन में आने वाली हर समस्या दूर होकर, जीवन में केवल खुशहाली, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। माना तो ये भी जाता हैं कि, केवल एक बार काल भैरव स्तोत्र, भैरव तंत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच और भैरव कवच का जाप, किसी भी व्यक्ति को उनकी कृपा प्राप्त करा सकता हैं।
ऐसे में हर माह ढलते चाँद अर्थात कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरव को समर्पित होती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरव जयंती के रूप में मनाई जाती हैं, जो सबसे महत्वपूर्ण होती हैं। सनातन धर्म की माने तो, यही वो तिथि थी जब काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। ऐसे में चलिए अब जानते हैं वो पौराणिक कथा, जब महादेव ने क्रोध में आकर दिया था काल भैरव को जन्म।
ऐसे हुई काल भैरव की उत्पत्ति
-शिव पुराण के अनुसार, पौराणिक काल में अंधकासुर नामक दैत्य ने, देवी-देवताओं से प्राप्त की गई अपनी शक्तियों के अहंकार में आकर, एक-बार महादेव को युद्ध के लिए ललकारते हुए उन पर हमला किया था। उसी हमले में महादेव चोटिल हुए और क्रोध में आकर उन्होंने, उस दैत्य अंधकासुर को मोक्ष दिलाने के लिए अपने रक्त से ही काल भैरव को जन्म दिया था। इसलिए भी काल भैरव को शिव जी का रौद्र रूप कहा गया है।
-काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर एक अन्य पौराणिक कथा भी बहुत प्रसिद्ध हैं, जिसके अनुसार एक बार त्रिदेव: ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर महा विवाद हुआ। इसी विवाद के बीच ब्रह्मा जी ने अपनी शक्तियों और ज्ञान का बखान करते हुए, महादेव को कुछ अपशब्द कहें, जिसने उन्हें अत्यंत क्रोधित कर दिया।
माना जाता हैं कि शिव जी के उसी क्रोध के, एक अंश का जन्म काल भैरव के रूप में हुआ। तब शिव जी के रूद्र अंश से उत्पन्न हुए उस काल ने, महादेव के अपमान का प्रतिशोध लेते हुए ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख काट दिया। इसके कारण ही काल भैरव पर ब्रह्म-हत्या का पाप लगा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें बाद में एक लम्बे समय तक, भिखारी बनकर रहना भी पड़ा था।
हिन्दू पंचांग अनुसार, जिस दिन भगवान शिव से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, वो तिथि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी। यही कारण हैं कि हर वर्ष इस तिथि को काल भैरवाष्टमी, भैरवाष्टमी और काल भैरव जयंती के रूप से, दुनियाभर में मनाया जाता है।
मान्यता अनुसार इस पवित्र तिथि के दिन महादेव बाबा काल भैरव के रूप में सभी पापियों का सर्वनाश कर, उन्हें दंड देते हैं। इसलिए उन्हें डंडाधिपति और महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता हैं।
काल भैरव- मंदिरों के रक्षक
भगवान काल भैरव को मंदिरों के रक्षक की उपाधि भी प्राप्त हैं, इसलिए उन्हें क्षेत्रपाल के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण हैं कि, आज भी कई बड़े मंदिरों के द्वार बंद होने और खुलने पर, मंदिर की चाबी काल भैरव की प्रतिमा के सामने रखी जाती हैं।
काल भैरव: अष्ट भैरव
हिन्दू धर्म में मुख्यतः काल भैरव के 8 अवतारों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें अष्ट भैरव के नाम से भी जाना जाता है।
(1) असितांग भैरव
(2) रुद्र भैरव
(3) चंद्र भैरव
(4) क्रोध भैरव
(5)उन्मत्त भैरव
(6) कपाली भैरव
(7) भीषण भैरव
(8) संहार भैरव
(सभी अष्ट अवतारों में से, आज लोग भैरव देव को बटुक भैरव और काल भैरव रूप में सबसे ज्यादा पूजते हैं।)
कालाष्टमी की पूजा विधि
-कालाष्टमी की पूजा रात के समय ही की जाती हैं, क्योंकि भैरव को काल और तांत्रिकों के देवता माना गया है।
-कालाष्टमी की पूजा के लिए रात में परिवार संग, काल भैरव के लिए कीर्तन व जागरण करते हुए उनकी आराधना करें।
-इस दौरान बाबा भैरव के साथ ही, माता वैष्णो देवी और शिव-पार्वती जी की भी पूजा करना अनिवार्य होता है।
-रात्रि के बाद अगली सुबह सूर्योदय से पूर्व ही स्नान, आदि कर साफ़ वस्त्र धारण करें।
-इसके पश्चात भैरव देव की पूजा करते हुए, उन्हें शमशान घाट से लायी गयी राख ही चढ़ाएं।
-फिर समस्त परिवार के साथ, काल भैरव कथा सुने और दूसरों को भी सुनाए।
-इसके बाद काल भैरव के मन्त्रों का जाप करें।
-इस दौरान मां बगलामुखी का अनुष्ठान भी करना शुभ माना गया है।
-पूजा के बाद श्रद्धा अनुसार, गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करें और किसी काले कुत्ते को भोजन जरूर कराए।
-अगर संभव हो तो, कालाष्टमी के दिन काल भैरव के किसी मंदिर में जाकर, उनके समक्ष तिल के तेल या सरसों के तेल का एक दीपक जलाएं।
बाबा भैरव के कुछ चमत्कारी मंत्र
हिन्दू धर्म में भैरव बाबा के उपरोक्त लिखे गए मंत्रों को विशेष कृपा और फल प्रदान करने वाला बताया गया है।
-भैरव जी के बटुक रूप या सौम्य रूप की पूजा-अर्चना के दौरान इन मन्त्रों का ही करें जाप:
“ॐ कर कलित कपाल कुण्डली दण्ड पाणी तरुण तिमिर व्याल
यज्ञोपवीती कर्त्तु समया सपर्या विघ्न्नविच्छेद हेतवे
जयती बटुक नाथ सिद्धि साधकानाम
ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः।।”
“ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।।”
-यदि कई कोशिशों के बाद भी, आपका कोई रुका हुआ काम नहीं बन पा रहा है तो, इस मंत्र का जाप करना बेहद लाभकारी सिद्ध होता हैं:-
“ओम ब्रह्म काल भैरवाय फट”
-अपनी संतान की हर प्रकार की समस्या या, भय को दूर करने के लिए इस मंत्र का करें जाप:-
“कौम भयहरणं च भैरव:ल”
-यदि कोर्ट-कचहरी में चल रहे किसी मुक़दमे का परिणाम अपने पक्ष में चाहते हैं तो, नीचे लिखे मंत्र की 11 मालाएँ जप करें:
“ऊं हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:”
कालभैरव जयंती के इन नियमों का करें पालन –
काल भैरव जयंती के दिन मुख्य तौर से, व्रत करने का विधान है। ऐसे में इस दिन शास्त्रों में कुछ विशेष नियमों का भी, पालन करना महत्वपूर्ण माना गया है:-
-भैरव जयंती के दिन बिलकुल भी झूठ और किसी को अपशब्द नहीं बोलने चाहिए। केवल और केवल सच बोलते हुए ही, बाबा भैरव की आराधना करें।
-व्रत करने वाले लोगों को अन्न ग्रहण करने से परहेज करना चाहिए। हालांकि अगर ऐसा करना संभव न हो तो व्रती फलाहार कर सकता है।
-व्रत करने वाले व्यक्ति को, इस दिन नमक का त्याग करना चाहिए। हालांकि सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता हैं।
-अपने आस-पास सफाई रखते हुए, गंदगी फैलाने से बचें।
-किसी भी कुत्ते को हानि न पहुंचाएं, बल्कि उसे भोजन कराए। इससे भैरवनाथ की कृपा प्राप्त होती हैं।
-कालभैरव जयंती के दिन, घर के सभी बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद ज़रूर लें।
-माना गया हैं कि, इस पवित्र तिथि से एक दिन पूर्व की रात में सोना नहीं चाहिए। बल्कि स-परिवार काल भैरव और मां दुर्गा की आराधना करते हुए, जागरण व कीर्तन करें।
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