जगन्नाथ मंदिर के वह छह चमत्कार जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए है अबूझ पहेली
आस्था और अंधविश्वास में बेहद बारीक फ़र्क़ होता है। किसी के लिए कोई मान्यता आस्था हो सकती है तो किसी के लिए वही मान्यता अंधविश्वास। ये आस्था और अंधविश्वास का खेल पैदा हुआ विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के पैदा होने के साथ। जब हर चीज के साथ जुड़ी मान्यताओं के ऊपर सवाल किये जाने लगे और उसके बदले में संतुष्ट कर देने वाला जवाब नहीं मिला तो इन मान्यताओं को एक टर्म दे दिया गया, अंधविश्वास।
लेकिन सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म होने का गौरव रखता है। यह गौरव सदियों से सवालों के प्रहार को झेलता और उससे उबर कर मजबूती से आज भी सब के सामने सीना ताने खड़ा है। इसी क्रम में आज के 21वीं सदी में भी सनातन धर्म वैज्ञानिक सोच और विज्ञान को आस्था की ताकत दिखा कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए यह पूछ लेता है कि बताओ वैज्ञानिकों अगर इसे दैवीय शक्ति नहीं कहोगे तो किसे कहोगे और बदले में विज्ञान और वैज्ञानिकों का बस मुंह खुला रह जाता है। इसका सबसे बड़ा उदहारण है पुरी का जगन्नाथ मंदिर जिसके चमत्कारिक कारनामों का जवाब आज भी विज्ञान के पास नहीं है। इस लेख में हम आपको जगन्नाथ पुरी मंदिर के वे तमाम चमत्कार बताएँगे जो आज भी वहां देखे और महसूस किये जा सकते हैं।
पहला चमत्कार : मंदिर का ध्वज
जगन्नाथ मंदिर के सबसे ऊंची जगह पर एक ध्वज लगा है। वैसे तो यह ध्वज हर रोज लगभग किसी 45 मंजिला इमारत इतने ऊँचे मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है क्योंकि मान्यता है कि अगर एक भी दिन यह क्रम छूटा तो मंदिर के कपाट 18 वर्षों के लिए बंद कर दिए जाएंगे। लेकिन असल चमत्कार यह नहीं है। चमत्कार मंदिर के ध्वज में है। दरअसल जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के बहाव के उलटी दिशा में लहराता है। मतलब कि अगर हवा पूरब से पश्चिम की ओर बह रही है तो ध्वज पश्चिम से पूरब की ओर लहराएगा। इस अद्भुत चमत्कार का जवाब आज भी किसी के पास नहीं है।
दूसरा चमत्कार : सुदर्शन चक्र
मंदिर के शिखर पर ही एक चक्र लगा है। जो लगभग 20 फीट लम्बा है और एक टन वजनी है। इस चक्र को पुरी शहर के किसी भी छोड़ से देखा जा सकता है। वैसे आश्चर्य की बात तो यह भी हो सकती है लेकिन एक और चमत्कार है जो इस चक्र को लेकर किसी दैवीय शक्ति के होने का अहसास कराता है। इस चक्र की ख़ास बात यह है कि आप इस चक्र को किसी भी कोने से खड़े होकर देखें, चक्र का मुख हमेशा आपकी तरफ ही रहेगा। ये कैसे होता है और ऐसा क्यों दिखता है, जवाब है कि किसी को पता नहीं।
तीसरा चमत्कार : मंदिर की परछाई
जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत रहस्यों में इस मंदिर की परछाई का भी अपना एक अलग किरदार है। नहीं, नहीं इस मंदिर की परछाई कुछ अजीबोगरीब नहीं बनती बल्कि, जगन्नाथ पूरी मंदिर की तो कभी परछाई बनती ही नहीं है। जी, आपने सही पढ़ा जगन्नाथ मंदिर की कभी परछाई नहीं बनती। फिर चाहे कितनी भी कड़ी धूप हो या फिर सूर्य का कोई सा भी कोण हो। अब आप इसे शानदार इंजीनियरिंग का नमूना कह लीजिये या फिर कोई चमत्कार, यह हम आप पर छोड़ते हैं। बस इतना बता देना चाहते हैं कि जगन्नाथ मंदिर हजारों साल पुराना है।
चौथा चमत्कार : समुद्र की लहरें
पुरी समुद्र के किनारे बसा हुआ शहर है और यह मंदिर भी समुद्र से नजदीक है। इस वजह से समुद्र की लहरों की आवाज़ पूरे मंदिर प्रांगण में सुनाई देती है लेकिन यहाँ भी एक ख़ास चीज है जो लोगों को हैरान कर देती है। जगन्नाथ मंदिर के चार दरवाजे हैं। उनमें से एक दरवाजे का नाम है सिंहद्वारम। जब आप इस दरवाजे के नजदीक खड़े होंगे तब तक तो आपको समुद्र की लहरों का शोर सुनाई देगा लेकिन जैसे ही आप इस द्वार से मंदिर के अंदर कदम रखते हैं, समुद्र के लहरों का शोर सुनाई देना बंद हो जाता है। यहाँ तक कि जगन्नाथ मंदिर के अंदर कहीं भी समुद्र के लहरों का शोर सुनाई नहीं देता है। है ना अद्भुत!
पांचवा चमत्कार : न परिंदा, न जहाज
जगन्नाथ पुरी मंदिर के चमत्कारों की लिस्ट में सबसे अद्भुत चमत्कार जो सबको हैरान करता है वह है मंदिर के ऊपर से किसी भी परिंदे और जहाज का न गुजरना। जी! मानव निर्मित हवाई जहाज के साथ-साथ मंदिर के ऊपर से एक परिंदा तक नहीं गुजरता। अगर आप हवाई जहाज के न गुजरने को लेकर मानव संसाधन और शानदार मैनेजमेंट को जिम्मेदार मानते हैं तो आपके पास मंदिर के ऊपर से परिंदों के न गुजरने का लेकर क्या जवाब है। क्योंकि हवाई जहाज तो फिर भी मानवों के नियंत्रण में है लेकिन आजाद परिंदे भला मानवों की कब मानने लगे। ऐसे में जगन्नाथ मंदिर के इस चमत्कार का किसी के पास कोई जवाब नहीं है। अगर है तो बस किसी दैवीय शक्ति के होने का एहसास।
छठा चमत्कार : प्रसादम
जगन्नाथ पुरी के प्रांगण में आज भी लगभग 1800 साल पुरानी परंपरा से ही प्रसाद तैयार किया जाता है। इस तरीके के अनुसार एक के ऊपर एक मटके रख कर यानी कि कुल 07 मटके रख कर प्रसाद को तैयार किया जाता है। ख़ास बात यह है कि मंदिर में बनने वाला प्रसाद आजतक ना कम पड़ा है और ना ही आजतक उसे फेंकने की नौबत आयी जबकि मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या हर दिन 2000 से 20,000 तक घटती-बढ़ती है। लेकिन इससे बड़ा आश्चर्य है मंदिर में बनने वाले प्रसाद के तरीके में। मंदिर में जिन सात मटकों को एक के ऊपर एक रखकर प्रसाद तैयार किया जाता है, उसमें सबसे ऊपर रखे गए मटके में प्रसाद सबसे पहले पकता है जबकि आम तौर पर ऐसे तरीके से कुछ भी तैयार करने में नीचे वाले मटके में खाना पहले तैयार होना चाहिए लेकिन यह जगन्नाथ मंदिर है और यहाँ कुछ भी आम होता कहाँ है।
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