गोत्र एवं प्रवर
- कात्यायन - कात्यायन, विष्णु, आङ्गिरस |
- पराशर - शक्ति, वशिष्ठ, पराशर |
- काश्यप - काश्यपावत्सार, नैध्रुव |
- वत्स - और्व, च्यवन, भार्गव, जामदग्न्य, आप्नवान |
- सावर्ण्य - सावर्ण्य, और्यच्यवन, भार्गव, जामदग्न्य, आप्नवान |
- भारद्वाज - भारद्वाज, आङ्गिरस, बार्हस्पत्य |
- शाण्डिल्य - शाण्डिल्य, असित, देवल |
- गौतम - गौतम, आङ्गिरस, औतथ्य |
- गाग्र्य - गाग्र्य, घृतकौशिक, माण्डव्य, अथर्व, वैशम्पायन |
- कौशिक - कौशिक, अत्रि, जमदग्नि |
- कृष्णात्रि - कृष्णात्रेय, आप्नवान, सारस्वत |
- वसिष्ठ - वसिष्ठ, अत्रि, सांकृत |
- कौण्डिन्य - कौण्डिन्य, आन्तीक, कौशिक |
- विष्णुवृद्धि - विष्णुवृद्धि, पौरुकुत्सत्र, सदस्यव |
- मौद्गल्य - मौद्गल्य, आङ्गिरस, भार्म्यश्व |
- भार्गव - भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्नि |
- कापिष्ठल - वसिष्ठ |
- गर्ग - आङ्गिरस, भारद्वाज, बार्हस्पत्य, श्रवत, गर्ग |
- कौण्डिन्य - कौण्डिन्य, वसिष्ठ, मित्रावरुण |
- वैजवाप - अत्रि, गविष्ठिर, पूर्वार्ध |
- गालव - विश्वामित्र, देवरात, औदुम्बर |
- दालभ्य - कश्यपावत्सार, नैध्रुव |
- सांकृत - सांकृत्यागिरस, गौरिवीत |
- सांख्यायन - सांख्यायन, वाचस्पति, आङ्गिरस, श्रवत, गर्ग |
- आङ्गिरस - आङ्गिरस, गौतम, भारद्वाज |
- उपमन्यु - उपमन्यु, औतथ्य, आङ्गिरस |
- आष्टिषेण - भार्गव, च्यवन, आप्नवान, आष्टिषेण, अनूप |
- आश्वलायन - भार्गव, वार्ध्यश्व, दिवोदास |
- औशनस - औशनस, भरद्वाज, शब्देन्द्र |
- औतथ्य - गौतम, आङ्गिरस, औतथ्य |
- कौसल्य - आगन्त, माहेन्द्र, मायेभू |
- मौद्गल्य - आङ्गिरस, भार्म्यश्व, मौद्गल्य |
- देवरात - विश्वामित्र, देवरात, औदल |
- कौत्स - आङ्गिरस, कौत्य, सांख्यायन |
- कौशिक - कौशिक, अघर्षण, विश्वामित्र |
- जमदग्नि - जामदग्न्य, और्व, वशिष्ठ |
- जैमिनि - जैमिनि, औतथ्य, सांकृत |
- कौथुम - आङ्गिरस, बार्हस्पत्य, भरद्वाज, वान्दन, मातवचसा |
- देवल - शाण्डिल्य, असित, देवल |
- विदल - वैश्वामित्र, देवरात, औदल |
- वासल - भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य |
- वैशम्पायन - विश्वामित्र, जमदग्नि |
- विश्वामित्र - विश्वामित्र, बृहस्पति, वृषगुण |
- याज्ञवल्क्य - याज्ञवल्क्य, आङ्गिरस, अजमी |
- शालंकायन - शालंकायन, अप्सार, नैध्रुव, आङ्गिरस, बार्हस्पत्य |
- शौनक - शौनक, शौनहोत्र, गृत्समद |
- गोभिल - गोभिल, असित, देवल |
- यास्क - यास्क, मित्रयुव, वैन्य |
- मार्कण्डेय - मार्कण्डेय, च्यवन, और्व, जामदग्न्य, आप्नवान |
- कण्व - कण्व, आङ्गिरस, अजमीढ़ |
- हारीत - आङ्गिरस, अम्बरीष, यौवनाश्व |
- भालन्दन - भालन्दन, गविष्ठिर, पूर्वातिथ्य |
- घृतकौशिक - घृतकौशिक, कौशिक, विश्वामित्र |
- लोगाक्षि - आङ्गिरस, सांकृत, गौरिवीत |
- अघमर्षण - विश्वामित्र, अघमर्षण, कौशिक |
- 1. देवि के लिए अष्टगंध की विधि इस प्रकार हैं -
चन्दनागरुकर्पूरं चोरकुंकुमरोचनाः | जटामांस्यथ कस्तूरीशक्तेर्गन्धाष्टकं विदुः ||
अर्थात् - चन्दन एक अंश, अगरु दो अंश, कर्पूर तीन अंश, कुंकुम चार अंश, रोचन पांच अंश, शिलारस छः अंश, जटामांसी सात अंश, और कर्चूर आठ अंश |