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माँ चंद्रघण्टा - नवरात्रि का तीसरा दिन

 चंद्रघण्टा माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। इनके नाम का अर्थ, चंद्र मतलब चंद्रमा और घण्टा मतलब घण्टा के समान। उनके माथे पर चमकते हुए चंद्रमा के कारण ही उनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इन्हें चंद्रखंडा नाम से भी जाना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को साहस और वीरता का अहसास कराता है और उनके दुःखों को दूर करता है। देवी चंद्रघण्टा माता पार्वती की ही रौद्र रूप हैं, लेकिन उनका यह रूप तभी दिखता है जब वे क्रोधित होती हैं, अन्यथा वे बहुत ही शांत स्वभाव की हैं।



माता चंद्रघण्टा का स्वरूप

माँ चंद्रघण्टा शेरनी की सवारी करती हैं और उनका शरीर सोने के समान चमकता है। उनकी 10 भुजाएँ हैं। उनके बाएँ चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमण्डलु विभूषित हैं, वहीं पाँचवा हाथ वर मुद्रा में है। माता की चार अन्य भुजाओं में कमल, तीर, धनुष और जप माला हैं और पाँचवा हाथ अभय मुद्रा में है। माता का अस्त्र-शस्त्र से विभूषित यह रूप युद्ध के समय देखने को मिलता है।

पौराणिक मान्यताएँ

जब भगवान शिव ने देवी से कहा कि वे किसी से शादी नहीं करेंगे, तब देवी को यह बात बहुत ही बुरा लगा। देवी की यह हालत ने भगवान को भावनात्मक रूप से बहुत ही चोट पहुँचाया। इसके बाद भगवान अपनी बारात लेकर राजा हिमावन के यहाँ पहुँचे। उनकी बारात में सभी प्रकार के जीव-जंतु, शिवगण, भगवान, अघोरी, भूत आदि शामिल हुए थे।

इस भयंकर बारात को देखकर देवी पार्वती की माँ मीना देवी डर के मारे बेहोश हो गईँ। इसके बाद देवी ने परिवार वालों को शांत किया, समझाया-बुझाया और उसके बाद भगवान शिव के सामने चंद्रघण्टा रूप में पहुँचीं। उसके बाद उन्होंने शिव को प्यार से समझाया और दुल्हे के रूप में आने की विनती की। शिव देवी की बातों को मान गए और अपने आप को क़ीमती रत्नों से सुसज्जित किया।

ज्योतिषीय संदर्भ

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

उपरोक्त जानकारियों के साथ हम उम्मीद करते हैं कि नवरात्रि का तीसरा दिन आपके लिए ख़ास होगा और देवी चंद्रघण्टा की कृपा आपके ऊपर बरसेगी।

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के 9 स्वरूपों में से मां चंद्रघण्टा उनकी तीसरी स्वरूप हैं। चंद्रघंटा देवी अपने भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्त करके उन्हें साहस प्रदान करती हैं। माता की विधिवत पूजा से जातक के जीवन से सभी दुःख दूर होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास रहता है और संसार में यश, कीर्ति और सम्मान मिलता है। मां का यह रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है।  आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करने वाली माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई। तो चलिए आपको बताते हैं कि इस महापर्व के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की किस प्रकार पूजा करने से देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।


माँ का नाम चंद्रघंटा क्यों पड़ा?

नवरात्रि के तीसरे दिन माता दुर्गा के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी की वंदना और पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से जातक के मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। 

ऐसा है माँ चंद्रघंटा का स्वरूप

देवी दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति और समृद्धि का प्रतीक जाता है। मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा है। मां चंद्रघंटा शेर की सवारी करती हैं। उनका शरीर सोने की तरह चमकता हुआ प्रतीत होता है। देवी की 10 भुजाएं हैं, जिनमें से उन्होंने एक तरफ की चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार, और कमण्डलु धारण किया है। माता का पांचवा हाथ वर-मुद्रा में होता है। वहीँ दूसरे तरफ देवी की अन्य चार भुजाओं में कमल का पुष्प, तीर, धनुष, जप माला होती है और पांचवा हाथ अभय मुद्रा में होता है। मां चंद्रघंटा ने गले में सफेद फूलों की माला धारण की हुई है और इनकी तीन आँखें हैं।  


मां चंद्रघंटा की पूजा में करें इस मंत्र का जाप

माता की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करने से जातक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः”

इस रंग का वस्त्र पहनकर करें माँ चंद्रघंटा की पूजा 

शक्ति और जीवन में समृद्धि की प्रतीक माने जाने वाली देवी चंद्रघंटा देवी की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघंटा देवी ने रक्त वर्ण के रंग का वस्त्र धारण किया हुआ है। ज्योतिष में इसका सीधा संबंध मंगल ग्रह से होता है। इसीलिए अगर कोई व्यक्ति नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा गहरे लाल रंग के वस्त्र पहनकर करे, तो इससे इंसान के जीवन में सुख समृद्धि का वास रहता है। 


देवी चंद्रघंटा की ऐसे करें पूजा 

चंद्रघंटा माता की पूजा से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, इसीलिए माता की पूजा के लिए आपको शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

  • नवरात्रि के तृतीया यानि तीसरे दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें। 
  • माँ की पूजा के लिए आप लाल वस्त्र ही धारण करें। 
  • पूजा में सबसे पहले देवी को केसर और केवड़ा के जल से स्नान कराएं। 
  • उसके बाद माता चंद्रघंटा को सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाकर उन्हें अच्छी तरह  सजा लें। 
  • पूजा में माता को केसर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएँ। इसके अलावा माँ चंद्रघंटा को गुड़ व लाल सेब भी ज़रूर चढ़ाएं। ये सारी वस्तुएँ माता रानी को बहुत प्रिय हैं। 
  • अब माँ चंद्रघंटा को सफ़ेद कमल और पीले गुलाब की माला पहनाएं। 
  • मां को लाल फूल, तांबे का सिक्का या तांबे की वस्तु चढ़ाएं। 
  • पूजा के दौरान ऊपर बताए मंत्र का जाप अवश्य करें।   
  • इसके बाद माता की आरती करें और आरती के समय घंटा बजाएं। 
  • चंद्रघंटा देवी की पूजा के बाद प्रसाद के रूप में गाय का दूध चढ़ाया जाता है। ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। 
  • ध्यान रहे यदि आपने नौ दिनों का व्रत रखा है, तो पूजा के बाद केवल एक समय ही फलहार करें।  

देवी चंद्रघंटा की पूजा से होने वाले लाभ

देवी चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि में तीसरे दिन की जाती है। माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। देवी के इस रूप की साधना करने से इंसान जीवन में पराक्रमी और निर्भय बनता है। ऐसी मान्यता है कि माता चंद्रघंटा इंसानों की प्रेत-बाधा से भी रक्षा करती हैं। चंद्रघंटा देवी की पूजा से इंसान के अंदर वीरता और निडरता के साथ-साथ सौम्यता, इंसान के नेत्र, मुख, और पूरी काया का भी विकास होता है। सच्चे मन से की गयी देवी की पूजा-उपासना इंसान को सभी सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं, इसीलिए इसीलिए जिस भी व्यक्ति पर शुक्र  ग्रह का अशुभ प्रभाव हो वह  चंद्रघंटा देवी की पूजा कर के  शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव भी कम कर सकता है।  

मां चंद्रघंटा की पवित्र कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा, तब असुरों का संहार करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन और स्वर्ग-लोक पर राज करना चाहता था। उसकी आतंक से परेशान होकर  सभी देवता इस समस्या से निकलने का समाधान जानने के लिए त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समक्ष पहुचें। 

देवताओं की परेशानी को सुनने के बाद त्रिदेवों को अत्यंत क्रोध आया और क्रोध के चलते उनके मुख से एक ऊर्जा निकली, जिससे एक देवी अवतरित हुईं। देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी- देवताओं ने भी माता को अपने अस्त्र सौंप दिए। देव राज इंद्र ने भी देवी को एक घंटा दिया। सूर्य देव ने अपना तेज और तलवार दी, साथ सवारी के लिए माता को सिंह प्रदान किया। 

सभी अस्त्र-शस्त्र के साथ मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंची। मां का रूप देखकर महिषासुर को यह आभास हो गया कि उसका काल समीप आ गया है। महिषासुर और देवी में और देवताओं व असुरों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की। 


नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएँ!

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