कठोपनिषद में यम और नचिकेता का संवाद भारतीय दर्शन की एक गहन और प्रेरणादायक कथा है, जिसमें आत्मा, मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों पर विमर्श होता है। यह संवाद कठ शाखा के कृष्ण यजुर्वेद से सम्बद्ध उपनिषद में वर्णित है और इसे मुक्ति के ज्ञान की एक उत्कृष्ट प्रस्तुति माना गया है। नीचे मैं इसका विस्तार से वर्णन कर रहा हूँ, संदर्भों के साथ:
कथा का प्रारंभ: नचिकेता का बलिदान हेतु समर्पण
कथा के अनुसार, एक महान ऋषि वाजश्रवस् ने स्वर्गलोक की प्राप्ति के लिए एक यज्ञ (विशेष रूप से विश्वजित यज्ञ) किया और उसमें अपनी सारी संपत्ति दान कर दी। किन्तु वह केवल बूढ़ी, दुर्गुणयुक्त गौओं को दान में देने लगे। यह देखकर उनका पुत्र नचिकेता, जो केवल 8–12 वर्ष का तेजस्वी और सत्यनिष्ठ बालक था, चकित हो उठा।
नचिकेता ने सोचा:
"हीन गौओं का दान देकर पिता कौन-सा पुण्य प्राप्त करेंगे?"
और वह बार-बार अपने पिता से पूछने लगा:
"कस्मै मां दास्यसि?"
(हे पिताजी! आप मुझे किसे दान देंगे?)
वाजश्रवस् क्रोधित होकर बोले:
"मृत्यवे त्वा ददामि"
(मैं तुझे मृत्यु को दे दूँगा।)
नचिकेता ने इसे आदेश मानकर, पितृ आज्ञा का पालन करते हुए मृत्यु के लोक, यमलोक की ओर प्रस्थान किया।
यमलोक में नचिकेता की प्रतीक्षा और यम का आगमन
नचिकेता यमलोक पहुँच गया, परन्तु यमराज वहाँ नहीं थे। नचिकेता ने बिना खाए-पीए तीन दिन तक यम के द्वार पर प्रतीक्षा की। जब यम लौटे तो उन्होंने नचिकेता की अतिथि-सेवा न कर पाने को अपराध माना और क्षमा मांगते हुए उसे तीन वर (boons) देने का वचन दिया – एक-एक प्रत्येक दिन के लिए।
नचिकेता के तीन वरदान
1. पहला वर:
पिता का क्रोध शांत हो, मुझे देखकर वह प्रसन्न हों।
यमराज ने वरदान दिया कि वाजश्रवस् पुत्र को देखकर प्रसन्न होंगे और उसके हृदय में कोई शोक नहीं रहेगा।
(कठोपनिषद, अध्याय 1, वल्ली 1, मंत्र 11)
2. दूसरा वर:
स्वर्गलोक और उसके कर्मों का ज्ञान।
नचिकेता ने स्वर्ग की अग्नि (यज्ञ) के ज्ञान की इच्छा की, जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।
यमराज ने उसे नचिकेता अग्नि का उपदेश दिया और वह यज्ञ नचिकेताग्नि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(कठोपनिषद, अध्याय 1, वल्ली 1, मंत्र 14-19)
3. तीसरा वर (मुख्य और गूढ़तम):
"मृत्योऽत् परे कं तद्स्यादिति — मृत्यु के पार क्या है? आत्मा मरती है या नहीं?"
यही प्रश्न इस संवाद का केंद्र बिंदु है।
नचिकेता ने पूछा:
"एतद्विदित्वा मुनयो मोदन्ते — यह जानकर ज्ञानी आनंदित होते हैं, कृपया मुझे यह ज्ञान दीजिए।"
(कठोपनिषद, अध्याय 1, वल्ली 1, मंत्र 20)
यम की परीक्षा और आत्मा का ज्ञान
यमराज ने नचिकेता की परीक्षा ली और उसे कई सांसारिक लोभ दिए:
दीर्घायु, पुत्र, धन, रथ, नारी, संगीत आदि।
परंतु नचिकेता अडिग रहा:
"अव्ययेन तु मा मोघं कुरु — इन क्षणभंगुर सुखों से मुझे संतोष नहीं है।"
फिर यमराज ने आत्मा का ज्ञान दिया:
मुख्य उपदेश:
आत्मा नित्य, अजन्मा और अविनाशी है।
"न जायते म्रियते वा कदाचित्..."
(ना आत्मा जन्म लेती है, ना मरती है — कठोप. 1.2.18)
शरीर नष्ट होता है, पर आत्मा नहीं।
श्रेय और प्रेय का विवेक:
मनुष्य के जीवन में दो मार्ग होते हैं —
श्रेय: कल्याण का मार्ग
प्रेय: प्रिय वस्तुओं का मार्ग
ज्ञानी व्यक्ति श्रेय का चयन करता है।
(कठोप. 1.2.1–2)
बुद्धि और इंद्रियों का रूपक:
शरीर एक रथ है, आत्मा उसका स्वामी, बुद्धि सारथी और इंद्रियाँ घोड़े हैं।
(कठोप. 1.3.3–9)
ब्रह्मविद्या का उपदेश:
नचिकेता को यमराज ने बताया कि आत्मा को केवल बुद्धि, ध्यान और वैराग्य से जाना जा सकता है। यह ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है।
नचिकेता को मोक्ष प्राप्ति
नचिकेता, जो आत्मज्ञान के लिए जिज्ञासु और दृढ़ था, यमराज के उपदेश को समझ गया।
अंत में उसे ब्रह्मविद्या का बोध हुआ और
"नचिकेता मृत्यु से परे सत्य को जान गया।"