जानें केतु की ज्योतिषीय महिमा और उसे प्रसन्न करने के उपाय
अक्सर ऐसा माना जाता है कि केतु एक अशुभ ग्रह है लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। यह व्यक्ति को सदैव बुरे फल नहीं कह देता कुंडली के तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में उपस्थित केतु व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ाता है। कुंडली में केतु सूर्य या चन्द्रमा के साथ हो तो ग्रहण दोष बनता है और उसका प्रभाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे व्यवसाय, विवाह, परिवार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है।
केतु ही वह ग्रह है जो कुंडली में विशेष स्थिति में उपस्थित होकर व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने में सक्षम होता है। केतु किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विशेष स्थिति होने पर जातक को कालसर्प योग देने में भी सक्षम होता है। आकाश मंडल में केतु का प्रभाव वायव्य कोण अर्थात उत्तर पश्चिम दिशा में माना जाता है। यदि कुंडली में शुभ स्थिति में केतु हो तो व्यक्ति को यश और प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुंचा सकता है।
केतु का धार्मिक महत्व एवं जीवन पर प्रभाव
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम।।
जिनकी आभा पलाश पुष्प के समान है, जो रूद्र स्वभाव वाले हैं और रूद्र के पुत्र हैं, अति भयंकर हैं, तारक आदि ग्रहों में प्रधान हैं, उन केतु को मैं प्रणाम करता हूं।
हिंदू धर्म के अनुसार सिंहिका नाम की राक्षसी का पुत्र स्वरभानु था, जो बहुत ही बुद्धिमान और बलशाली था तथा उसकी महत्वाकांक्षाएं अधिक थीं। वह देवताओं में स्थान प्राप्त करना चाहता था। जब देवों और दानवों के बीच आपसी सहमति से समुद्र मंथन किया गया तो अनेक रत्नों के निकलने के उपरांत अमृत निकलने वाला था और देव और दानव दोनों ही उसे प्राप्त करके अमर हो जाना चाहते थे। जैसे ही अमृत बाहर आया देव और दानवों के मध्य लड़ाई शुरू हो गई और दोनों ही उसे अमृत का पान कर जल्द से जल्द करके अमर को जाना चाहते थे।
भगवान श्री हरी विष्णु से देवताओं ने सहायता मांगी तो भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया और दानवों को अपने मोह पाश में बाँधकर सम्मोहित कर लिया तथा देवताओं को अमृत पान कराने लगे लेकिन स्वर भानु को भगवान विष्णु की यह सारी योजना समझ में आ गई और इसलिए जब सभी देवता अमृत पान कर रहे थे तो वह भी उन देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया और अमृत पान की प्रतीक्षा करने लगा।
जैसे ही भगवान विष्णु ने अपने मोहिनी अवतार के द्वारा देव रूपी स्वरभानु को अमृत पान कराया, चंद्रमा और सूर्य ने उसको पहचान लिया और उन्होंने तुरंत इसकी शिकायत मोहिनी रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु से की। यह देखकर भगवान विष्णु अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने तक उसी क्षण अपने सुदर्शन चक्र से उसका धड़ से अलग कर दिया लेकिन जब तक यह सब घटना होती, अमृत उसके कंठ में उतर चुका था।
यही वजह हुई कि उसका शरीर अब अमर हो गया था फिर उसको नव ग्रहों में स्थान दिया गया। चंद्रमा और सूर्य से प्रतिशोध लेने के कारण ही वह स्वरभानु, जिसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में पहचाना जाने लगा, इन दोनों ग्रहों का ग्रहण करता है, जिसके परिणाम स्वरूप सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की घटनाएं घटित होती हैं।
केतु सदैव वक्री गति करने वाले माने जाते हैं। इन्हें प्रत्यक्ष ग्रह तो नहीं लेकिन छाया ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। केतु को किसी विशेष राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। धनु तथा मिथुन राशि में यह क्रमशः उच्च एवं नीच अवस्था में माना गया है। मतान्तर से वृश्चिक राशि में भी उच्च और वृषभ राशि में नीच अवस्था में माना जाता है।
यदि केतु कुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में बहुत ही जल्दी व्यक्ति को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा देता है। केतु आपको धार्मिक बनाता है और यदि केतु अत्यंत शुभ स्थिति में हो तो आपको किसी मंदिर अथवा धार्मिक स्थल या धार्मिक संस्था का प्रधान भी बनवा सकता है। केतु से प्रभावित जातक अपने वाहनों पर झंडा लगाकर घूमते हैं।
केतु से मिलने वाले विभिन्न फल
अच्छा और शुभ केतु आपको जीवन में यश और सफलता देता है। यदि यह शुभ स्थिति में हो तो यह आपको साहस, आध्यात्मिकता और वैराग्य भी प्रदान करता है। केतु का नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति को अनेक समस्याओं में फँसा देता है। इसकी अशुभ स्थिति व्यक्ति के पैरों में कमज़ोरी, नाना और मामा के प्यार से विमुख होना, रीढ़ की हड्डी, घुटने, लिंग, जोड़ों के दर्द, किडनी, पैर, कान, आदि जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है।
केतु ग्रह की स्थिति के कारण व्यक्ति समाज सेवा, आध्यात्मिक क्षेत्र और धर्म आदि से जुड़े कार्य करता है तथा सेवाश्रम, दूसरों की मदद करना तथा धार्मिक संस्थाओं से जुड़कर काम करता है। जहरीले जीव, भूरे एवं काले रंग के पशु – पक्षी, आदि केतु के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं।
विभिन्न शास्त्रों में केतु ग्रह की प्रसन्नता और अनुकूलता प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार से किए जाने वाले उपायों का वर्णन किया गया है, जिनमें रत्न और यंत्र धारण, व्रत और जप तथा औषधि स्नान का भी विधान कहा गया है। वृहद्दैवज्ञ रंजन, गरुड़ पुराण, नारद संहिता, यंत्र चिंतामणि और शुक्र नीति, आदि में भी केतु के बारे विस्तार से बताया गया है।
यह जैमिनी गोत्र के हैं। इनका वर्ण धुएं के समान है और वैसा ही वस्त्र धारण करते हैं। इनका मुख्य विकृत है और गीध वाहन हैं। इनके दो हाथों में वर मुद्रा और गधा हैं। इनके अधि देवता हैं चित्रगुप्त तथा प्रत्यधि देवता हैं ब्रह्मा। इनका मुख्य मंत्र है ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः।
केतु को कैसे करें प्रसन्न
विभिन्न फलित ग्रंथों के अनुसार केतु को प्रसन्न करने के लिए लहसुनिया (वैदूर्य) रत्न धारण करना चाहिए, जिससे केतु का अनिष्ट दूर होता है। लहसुनिया की अनुपस्थिति में फिरोजा उपरत्न भी धारण किया जा सकता है। यदि जन साधारण के लिए केतु का रत्न धारण करना संभव ना हो तो केतु यंत्र धारण किया जा सकता है। केतु का यंत्र शनिवार के दिन लोहे के ताबीज में रखकर धारण करना चाहिए।
मनुखेचरभूपतिथिविश्व शिवादिक् सप्तादशसूर्यमिता।
क्रमशो विलिखेन्नवकोष्ठमिते परिधार्य नरा दुःखनाशकराः।।
इस प्रकार केतु का यंत्र धारण करने से भी केतु से संबंधित सभी अरिष्टों का निवारण हो सकता है।
केतु के लिए व्रत कैसे रखें
- केतु का व्रत शनिवार को किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, केतु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी केतु का व्रत भी किया जा सकता है।
- केतु का व्रत अट्ठारह शनिवारों तक करना चाहिए।
- व्रत के दिन व्यक्ति को भूरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए और ॐ स्राम स्रीम स्रौम सः केतवे नमः मंत्र का जाप करना चाहिये।
- उपरोक्त मंत्र की अट्ठारह, ग्यारह या पांच माला जाप करना चाहिए।
- जिस समय आप जप कर रहे हों, एक पात्र में दूर्वा, जल और कुशा अपने पास रख लें।
- जप करने के बाद इन सभी को पीपल वृक्ष की जड़ में चढ़ा दें।
- व्रत के दिन भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समय के अनुसार रेवड़ी और काले तिल से बने पदार्थ खाएं।
- रात में घी का दीपक पीपल वृक्ष की जड़ में रखकर जला दें।
- इस व्रत को करने से भय दूर होता है और नाना और मामा पक्ष से अच्छे सम्बन्ध बनते हैं।
- व्यक्ति को यश तथा मान – सम्मान मिलता है तथा केतु जनित कष्टों से मुक्ति मिलती है।
केतु के लिए औषधि स्नान
ज्योतिष शास्त्र में औषधि स्नान को काफी महत्वपूर्ण बताया गया है, जिससे केतु ग्रह जनित पीड़ा शांत हो सकती है। इसके अनुसार, यदि केतु के अनिष्ट प्रभावों को शांत करना हो तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए रक्त चंदन, लोध, गजमद, कस्तूरी, मोथा, रतनजोत, भेड़ का मूत्र, दाड़िम और गुडूची से स्नान करना बताया गया है। यदि उपरोक्त सारी सामग्रियां उपलब्ध ना हो सकें तो जितनी अधिक संख्या में मिल जाएं उतना ही उत्तम रहेगा:
शिखाभृदार्त्तिर्तिलपत्रिकाब्दसारंगनाभीमदाम्बुरोर्ध्रैः।
निषेधतीहाविकमूत्रमिश्रैः स्नानं नराढयैः करकामृताभ्याम्।।
केतु का दान
केतोर्वैदूर्यममलं तैलं मृगमदं तथा।
ऊर्णांस्तिलैस्तु संयुक्ता दद्यात्क्लेशानुपत्तये।।
केतु ग्रह के दोष के निवारण करने के लिए छाग (बकरी) का दान करना अत्यंत शुभ होता है। इसके अलावा, केतु की कृपा प्राप्ति के लिए लहसुनिया रत्न (वैदूर्य अथवा कैट्स आई), कस्तूरी, तैल, ऊनी वस्त्र, तिल, लोहा, कम्बल, उड़द, छाता, काला पुष्प, सप्तधान्य आदि का दान करना चाहिए।
जब भी आप केतु के निमित्त कोई उपाय करने जा रहे हैं तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए आप वह कार्य कर सकते हैं:
धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत् गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषितांगः सदास्तु मे केतुगणः प्रशान्तः।।
इसका अर्थ यह है कि धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा को धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबंद से सुशोभित अंगों वाले तथा शांत स्वभाव वाले केतु मेरे लिए सदा वर प्रदान करने वाले हों।
केतु के कारण होने वाले रोग
कुछ विशेष परिस्थितियों में केतु अति अशुभ हो जाता है और ऐसे में शारीरिक तथा अन्य समस्याएं भी दे सकता है। यदि केतु वृषभ या मिथुन अर्थात् अपनी नीच राशि में शुक्र के साथ स्थित हो अथवा लग्न या पंचम भाव में शनि के साथ विराजमान हो या फिर केतु जन्म कुंडली या गोचर कुंडली में सूर्य के साथ सातवें या आठवें भाव में गोचर कर रहा हो या फिर केतु शत्रु राशि अर्थात् मेष, कर्क अथवा सिंह राशि में स्थित होकर कुंडली के दूसरे, तीसरे, पांचवें या सातवें भाव में शनि के साथ स्थित हो और उस पर सूर्य की दृष्टि हो तो ऐसी स्थिति वाला केतु काफी परेशानी जनक साबित हो सकता है। यदि आपकी कुंडली में केतु पीड़ित है तो इस प्रकार स्थित केतु से हैजा, कैंसर, रक्ताल्पता, निमोनिया, जल जाना, त्वचा रोग, छूत की बीमारी अर्थात संक्रामक रोग, दमा रोग, मूत्र रोग, पित्त रोग, शरीर में खुजली होना, दस्त बंद हो जाना, प्रेत पीड़ा, चित्ती निकलना, तांत्रिक पीड़ा, काला जादू अथवा बवासीर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
केतु के मंत्र एवं विशेष उपाय
केतु का बीज मंत्र और अन्य मंत्र आपको केतु की कृपा बड़ी ही सहजता से प्रदान कर सकते हैं। ये मंत्र इस प्रकार हैं:
ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः
ॐ कें केतवे नमः
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः ।। (यजुर्वेद २९|३७)
ब्रह्मांड पुराण में भी केतु के श्लोक द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है:
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबलः।
अतनुश्चाोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी ।।
इसका अर्थ है कि महान शिरा अर्थात नाड़ी से संपन्न, विशाल मुंह वाले, बड़े दांत वाले, महाबली, बिना शरीर वाले तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखि स्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।
उपरोक्त मंत्रों के अतिरिक्त निम्नलिखित विशेष उपाय भी बहुत कारगर होते हैं:
- केतु ग्रह की शांति के लिए किसी मंदिर में जाकर झंडा लगाना बहुत शुभ रहता है।
- शनिवार के दिन भूरे रंग के कपड़े में काले तिल भर कर दान करना भी अति शुभकारी साबित होता है।
- केतु को प्रसन्न करने के लिए अश्वगंधा का पौधा लगाना भी अति शुभ माना जाता है।
- आप केतु के स्वामित्व वाले अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र के दौरान या शनि होरा में उपरोक्त उपायों को करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
- केतु की शांति के लिए ब्रह्म देव जी की आराधना करना सर्वोत्तम माना गया है।
- आप रुद्राभिषेक संपन्न करवाकर भी केतु के दोषों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
- इसके अलावा यदि केतु की दशा चल रही हो और आपको केतु के अशुभ मिल रहे हों तो आप श्री भैरव चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।