इस विधि से पहनें ये अद्भुत रुद्राक्ष और पाएं स्वास्थ्य लाभ
जहाँ एक तरफ दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप चल रहा है वहां आज भी भगवान शिव का प्रतीक माना जाने वाला रुद्राक्ष लोगों की आस्था और विश्वास का अटूट केंद्र बना हुआ है। हिंदू मान्यताओं में रुद्राक्ष का सीधा संबंध भगवान शिव से माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग रुद्राक्ष को पूज्य मानते हैं।
ऐसे में इस कठिन समय में कोरोना वायरस जैसी जानलेवा बीमारी से बचने के लिए रुद्राक्ष काफी मददगार साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता है और इसीलिए रुद्राक्ष की आराधना करने वाले जातकों के समस्त पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं।
रुद्राक्ष उत्पत्ति की पौराणिक कथा
रुद्राक्ष उत्पत्ति से जुड़ी एक कथा शिव महापुराण में वर्णित है। शिव महापुराण की इस कथानुसार भगवान् शिव ने एक बार एक हजार वर्षों तक समाधि लगाई। इस समाधि से जब वो वापस बाहरी जगत के संपर्क में आए तो जग कल्याण के लिए उनके नेत्रों से अश्रु धारा बही और आँसू की यह बूंदें जब पृथ्वी पर गिरीं तो इनसे रुद्राक्ष वृक्षों की उत्पत्ति हुई और भक्तों के हित में यह वृक्ष पूरी धरती पर फैल गए। इन वृक्षों पर जो फल लगे उन्हें ही रुद्राक्ष कहा गया। रुद्राक्ष को पापनाशक, रोगनाशक और सिद्धिदायक माना गया है। शरीर के विभिन्न अंगों में अलग-अलग तरह के रुद्राक्ष धारण करने से लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
रुद्राक्ष को लेकर धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं
हिंदू मान्यताओं और हमारे पुराणों के अनुसार रुद्राक्ष की कृपा से व्यक्ति को जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जबकि विज्ञान का मानना है कि रुद्राक्ष से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, पैरामैग्नेटिक जैसी तरंगे उत्सर्जित होती हैं जो कि मनुष्य जीवन के लिए किसी वरदान से काम नहीं हैं। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति को धार्मिक, आध्यात्मिक और चिकित्सीय तीनों तरह के लाभ प्राप्त होते हैं।
विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष और उनका महत्व
रुद्राक्ष एक मुखी से चौदह मुखी तक होते हैं और हर रुद्राक्ष का अलग महत्व और अलग धारण विधि है। रुद्राक्ष धारण करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि रुद्राक्ष असली है या नहीं, क्योंकि रुद्राक्ष कहीं से भी खंडित न हो, इस पर कीड़ा न लगा हो, तभी रुद्राक्ष से आपको लाभ प्राप्त होगा। मनवांछित फल को पाने के लिए रुद्राक्ष को धारण करना बहुत शुभ माना गया है।
रुद्राक्ष को पहनने के बाद व्यक्ति को जीवन और मरण का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आतंरिक शक्तियों को जागृत करने के लिए भी इसे धारण किया जाता है। इसके चिकित्सीय गुण तनाव, उच्च रक्तचाप और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं से छुटकारा दिलाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को न केवल भगवान् शिव बल्कि तीनों देवों सहित आकाश मंडल में स्थित नवग्रहों की भी कृपा प्राप्त होती है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। आइए अब हम आपको बताते हैं विभिन्न रुद्राक्षों के प्रकार और उन्हें धारण करने की विधि।
एक मुखी रुद्राक्ष
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, उस रुद्राक्ष को एक मुखी रुद्राक्ष कहा जाता है जिसमें एक आँख हो। यह रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक स्वरूप माना जाता है। ज्योतिष में एक मुखी रुद्राक्ष का स्वामी सूर्य ग्रह है इसलिए इसे आत्म चेतना को जाग्रत करने का कारक भी माना जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से लौकिक और पारलौकिक अनुभव को प्राप्त किया जा सकता है।
इस रुद्राक्ष के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर आत्मबल का भी निर्माण होता है। इसके साथ ही इसे धारण करने से आप के अंदर नेतृत्वकारी क्षमताओं का विकास होता है। सूर्य के समान आप में तेज की वृद्धि होती है और आप हर स्थिति में अच्छा प्रदर्शन कर पाने में सक्षम होते हैं।
एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि –
- रुद्राक्ष को पहनने से पूर्व इस पर गंगाजल या कच्चे दूध का छिड़काव करें।
- इसके बाद धूप, अगरबत्ती जलाकर भगवान शिव की आराधना करें।
- उन्हें सफ़ेद पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ ह्रीं नम:’ का 108 बार जाप करना चाहिए।
- आप सूर्य देव के बीज मंत्र ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का 108 बार जाप करके भी इसे धारण कर सकते हैं।
- पूजा-अर्चना करने के बाद रविवार को प्रातः काल में या कृतिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में रुद्राक्ष को धारण करना शुभ होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष
दांपत्य जीवन में सामंजस्य बिठाने के लिए दो मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यह रुद्राक्ष भगवान शिव के अर्द्ध-नारीश्वर रूप का प्रतीक है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दो मुखी रुद्राक्ष का स्वामी ग्रह चंद्र है। जिन जातकों की कुंडली में चंद्र कमजोर है उन्हें दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। विशेषकर गर्भवती महिलाओं द्वारा यदि इस रुद्राक्ष की आराधना की जाए तो उन्हें इससे लाभ मिलता है। यह रुद्राक्ष बायीं आँख से जुड़े रोगों के साथ-साथ फेफड़े, हृदय और दिमाग से संबंधित बीमारियों को मिटाने में भी लाभकारी साबित होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- दो मुखी रुद्राक्ष को सफ़ेद या काले धागे में पिरोकर अथवा सोने या चाँदी की चेन में पिरोकर धारण करना चाहिए।
- धारण करने से पूर्व रुद्राक्ष को गंगाजल या दूध से शुद्ध करें।
- शिव-पार्वती जी की धूप अगरबत्ती जलाकर पूजा करें और उन्हें सफ़ेद पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद चन्द्र के बीज मन्त्र ‘ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः’ का 108 बार जाप करें।
- आप रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ नम:’ का 108 बार जाप करके भी इसे धारण कर सकते हैं।
- इसके उपरांत हस्त, रोहिणी, श्रवण नक्षत्र में या सोमवार के दिन दो मुखी रुद्राक्ष को धारण करें।
तीन मुखी रुद्राक्ष
तीन मुखी रुद्राक्ष को भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहनना चाहिए। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मंगल ग्रह को तीन मुखी रुद्राक्ष का स्वामी माना गया है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से कुंडली से मंगल दोष दूर हो जाता है। इस रुद्राक्ष को विद्या प्राप्ति के लिए भी धारण किया जाता है। इसे धारण करने से तन और मन शुद्ध होता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करें।
- इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा अथवा चित्र के सामने धूप-अगरबत्ती जलाकर उनकी पूजा-अर्चना करें।
- इसके बाद हनुमान जी को लाल पुष्प अर्पित करें और मंगल देव के बीज मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ का जाप करें।
- आप रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ क्लीं नमः’ का 108 बार जाप करके भी रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं।
- इस विधि को करने के बाद मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र में अथवा मंगलवार को प्रातः काल में इस रुद्राक्ष को धारण करें।
चार मुखी रुद्राक्ष
चार मुखी रुद्राक्ष का संबंध त्रिदेवों में से एक भगवान ब्रह्मा जी से माना जाता है। इस चार मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति को भगवान ब्रह्मा की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। चार मुखी रुद्राक्ष पर बुध ग्रह का आधिपत्य माना जाता है। चार मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को खुद में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। यह रुद्राक्ष किडनी और थाइराइड से जुडी समस्याओं को दूर करने के लिए भी पहना जाता है।
चार मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- चार मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे कच्चे दूध या गंगाजल से शुद्ध कर लें।
- इसके बाद भगवान् विष्णु की धूप-दीप जलाकर आराधना करें और उन्हें पीले पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ ह्रीं नम:’ का 108 बार जाप करें।
- आप बुध ग्रह के बीज मंत्र ‘ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः’ का कम-से-कम 108 बार जाप करके भी रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं।
- इस क्रिया को करने के बाद बुधवार के दिन अथवा अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र में चार मुखी रुद्राक्ष को धारण करें।
पाँच मुखी रुद्राक्ष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देव गुरु बृहस्पति को पांच मुखी रुद्राक्ष का अधिपति माना गया है। पाँच मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से जातक को मानसिक शांति का अनुभव होता है और इससे स्वास्थ्य में भी सकारात्मक बदलाव आते हैं। इस रुद्राक्ष को धारण करने से मनुष्य की आयु में भी वृद्धि होती है। माना जाता है कि जो भी जातक पाँच मुखी रुद्राक्ष धारण करता है उसे भगवान् शिव के पाँच रूपों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस रुद्राक्ष को धारण करके व्यक्ति किसी भी तरह की दुर्घटना से बच जाता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- पाँच मुखी रुद्राक्ष को सोने या चाँदी में मढ़वाकर या बिना मढ़वाए भी धारण कर सकते हैं।
- इस रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करना चाहिए इसके बाद धूप-दीप जलाकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- तत्पश्चात ‘ॐ ह्रीं नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
- आप गुरु बृहस्पति के बीज मंत्र ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ का 108 बार जाप करके भी रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं।
- इस विधान को करने के बाद गुरुवार के दिन पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में पांच मुखी रुद्राक्ष को धारण करें।
छ: मुखी रुद्राक्ष
छह मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का रुप माना जाता है। जो लोग इस रुद्राक्ष को धारण करते हैं उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से भी मुक्ति मिलती है। ज्योतिष की मान्यताओं के अनुसार शुक्र ग्रह इस रुद्राक्ष का स्वामी माना गया है। शुक्र प्रेम, सुंदरता, आकर्षण, कलात्मक प्रतिभा का कारक होता है। जो व्यक्ति छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करता है उसे आँख, गर्दन और मूत्र से संबंधित रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही व्यक्ति की इच्छा शक्ति और ज्ञान में भी इजाफा होता है और जीवन में खुशियां आती हैं।
छ: मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे कच्चे दूध या गंगाजल के छिड़काव से शुद्ध कर लें।
- इसके बाद भगवान कार्तिकेय की आराधना धूप-दीप जलाकर करें।
- तत्पश्चात् रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ ह्रीं हूं नम:’ का जाप 108 बार करें।
- चुंकि छह मुखी रुद्राक्ष का स्वामी ग्रह शुक्र है इसलिए आप शुक्र मंत्र ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’ का 108 बार जाप करके भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
- इस विधान को करने के उपरांत शुक्रवार के दिन अथवा भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करें।
सात मुखी रुद्राक्ष
सात मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इस रुद्राक्ष के देवता हनुमान जी और सात माताएं हैं। शनि को इस रुद्राक्ष का स्वामी ग्रह माना जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता भी दूर हो जाती है। इसके साथ ही नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांसपेशियों का दर्द, पक्षाघात, क्षय व मिर्गी रोग, सामाजिक चिंता और मिर्गी जैसे रोगों में भी सात मुखी रुद्राक्ष को पहनने से फायदा मिलता है।
केवल यही नहीं यदि आपकी आर्थिक स्थिति सही नहीं है तो इस रुद्राक्ष को पहनने से आर्थिक पक्ष भी मजबूत होता है। मूलांक आठ वालों को इस रुद्राक्ष को पहनने से अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
सात मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- सात मुखी रुद्राक्ष को गंगाजल से शुद्ध करें।
- इसके पश्चात भैरव जी को काले तिल, धुप-दीप अर्पित करें।
- इसके बाद ‘ॐ हूं नम:’ मंत्र का जाप करें।
- यह रुद्राक्ष शनिदेव से संबंधित है इसलिए आप शनि देव के बीज मंत्र ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’ का 108 बार जाप भी कर सकते हैं।
- इसके उपरांत पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में या शनिवार के दिन सूर्यास्त के बाद सात मुखी रुद्राक्ष को काले या लाल धागे में पिरोकर धारण करें।
आठ मुखी रुद्राक्ष
आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से जीवन में आ रही परेशानियों से छुटकारा मिलता है। शिवपुराण के अनुसार अष्टमुखी रुद्राक्ष को भैरव महाराज का रूप माना गया है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु को आठ मुखी रुद्राक्ष का स्वामी ग्रह माना जाता है। इस रुद्राक्ष में गणेश, माँ गंगा और कार्तिकेय का अधिवास माना गया है। अगर आपको जीवन में प्रसिद्धि चाहिए तो आपको इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए।
इस रुद्राक्ष को पूजा स्थल पर भी रखा जा सकता है और गले में भी धारण किया जा सकता है। इसे सिद्ध करके धारण करने से पितृ दोष दूर होता है। यह चर्म, पैरों के कष्ट और हड्डी से संबंधित रोगों में भी कारगर साबित होता है। मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए भी इस रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है।
आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे कच्चे दूध और गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए।
- इसके पश्चात भगवान गणेश को धूप-दीप और अगरबत्ती अर्पित करनी चाहिए और उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- इसके बाद राहु के बीज मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ का मंत्र जाप करना चाहिए।
- आप रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ हुं नम:’ का 108 बार जाप भी कर सकते हैं।
- इस विधान को पूरा करने के बाद स्वाति, शतभिषा, आर्द्रा नक्षत्र या शनिवार के दिन रुद्राक्ष को धारण किया जाना चाहिए।
नौ मुखी रुद्राक्ष
शास्त्रों के अनुसार नौ मुखी रुद्राक्ष का अधिपत्य माँ दुर्गा को प्राप्त है। इस रुद्राक्ष को माँ के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। वहीं वैदिक ज्योतिष में केतु को नौ मुखी रुद्राक्ष का स्वामी ग्रह माना जाता है। जो भी व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है उसपर केतु ग्रह के बुरे प्रभावों का असर नहीं पड़ता है। इस रुद्राक्ष को पहनने से काल सर्प दोष का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से इंसान के साहस में इजाफा होता है। नेतृत्वकारी क्षमताओं को विकसित करने के लिए भी इस रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। इससे मानसिक तनाव और शारीरिक पीड़ाओं से भी मुक्ति मिलती है।
नौ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे गंगाजल या कच्चे दूध से पवित्र किया जाना चाहिए।
- इसके पश्चात माँ दुर्गा को लाल चंदन, धूप-दीप और अगरबत्ती अर्पित करनी चाहिए और उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- इसके साथ ही केतु मंत्र ‘ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः’ का 108 जाप किया जाना चाहिए।
- आप रुद्राक्ष मंत्र ‘ऊँ ह्रीं हुं नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करके भी रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं।
- इसके उपरांत अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र या बुधवार या शनिवार को इस रुद्राक्ष को धारण किया जाना चाहिए।
दस मुखी रुद्राक्ष
दस मुखी रुद्राक्ष का संबंध भगवान् विष्णु से माना जाता है। इस रुद्राक्ष को भय मुक्ति बुरी नज़र से बचने के लिए धारण किया जाता है। तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले जातकों को इस रुद्राक्ष को धारण करने से कई फायदे मिलते हैं। दस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से दमा, पेट और आँख से संबंधित परेशानियां नहीं होती हैं। इस रुद्राक्ष को धारण करने से जादू-टोने से भी बचा जा सकता है। दस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से हर ग्रह की प्रतिकूलता दूर हो जाती है।
दस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- दस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध कर लें।
- भगवान विष्णु को धूप-दीप, अगरबत्ती और फूल अर्पित करें।
- इसके बाद रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ ह्रीं नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
- तत्पश्चात् रविवार या सोमवार को इस रुद्राक्ष को धारण करें।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
शिवपुराण के अनुसार, ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के रुद्र अवतार यानी कि रुद्रदेव का रुप है। इसके साथ ही इस रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक भी माना जाता है। जीवन के किसी भी पक्ष को मजबूत करने के लिए इस रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है। जो व्यक्ति इसे धारण करता है वह अपने विरोधियों पर हमेशा हावी रहता है। शिखा पर इस रुद्राक्ष को धारण करना अत्यंत शुभ माना गया है। कई प्रकार के मानसिक रोगों में भी इस रुद्राक्ष को धारण करने से फायदा मिलता है।
जिन स्त्रियों को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही अगर वो विश्वासपूर्वक इस रुद्राक्ष को धारण करें तो उन्हें संतान प्राप्ति हो सकती है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से बल, बुद्धि और साहस में वृद्धि होती है। व्यापारियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक सिद्ध होता है इसे धारण करने से आय के नए स्रोत खुलते हैं। रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को धारण किया जाता है।
जिन शादीशुदा जोड़ों के संतान नहीं है उनके लिए भी यह रुद्राक्ष शुभफलदायक सिद्ध होता है और इसे धारण करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि-
- ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इस शुद्ध किया जाना चाहिए।
- गंगाजल या कच्चे दूध का छिड़काव करके आप इसे शुद्ध कर सकते हैं।
- इसके पश्चात हनुमान जी की पूजा अर्चना की जानी चाहिए।
- हनुमान जी को धूप-दीप और फूल अर्पित करके ‘ॐ ह्रीं हूं नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
- इसके उपरांत मंगलवार के दिन इसे धारण किया जाना चाहिए।
बारह मुखी रुद्राक्ष
बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरुप माना जाता है और इसे धारण करने से मनुष्य को दो लोकों (पृथ्वी और स्वर्ग) का सुख मिलता है। आँखों से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए भी इसे धारण किया जा सकता है। इस रुद्राक्ष को सूर्य ग्रह से भी संबंधित माना गया है। इसलिए जो व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है उसे सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
साथ ही असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। मस्तिष्क और ह्रदय से जुड़े रोग इस रुद्राक्ष को धारण करने से दूर हो जाते हैं। इसे धारण करने से बुद्धि का विकास होता है तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जो लोग आध्यात्मिक प्रवृति के हैं यह रुद्राक्ष उनके लिए भी लाभकारी होता है और मनुष्य के तेज में वृद्धि होती है।
धारण करने की विधि-
- बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे शुद्ध करें।
- आप कच्चे दूध या गंगाजल से इसे शुद्ध कर सकते हैं।
- इसके पश्चात सूर्य देव को धूप-दीप और फूल अर्पित किये जाने चाहिए।
- इसके बाद सूर्य देव के बीज मंत्र ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का 108 बार पाठ किया जाना चाहिए।
- इसके साथ ही आप ‘ॐ क्रों श्रों रों नमः’ मंत्र का 108 बार जाप भी कर सकते हैं।
- इस विधान को पूरा करने के बाद रविवार के दिन बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण किया जाना चाहिए।
तेरह मुखी रुद्राक्ष
तेरह मुखी रुद्राक्ष का संबंध शुक्र देव से माना जाता है। इसके साथ ही यह इंद्र देव से भी संबंधित है। इस रुद्राक्ष को मनवांछित फलों की प्राप्ति और व्यक्तित्व में सुंदरता लाने के लिए पहना जाता है। इस रुद्राक्ष को कामदेव से भी संबंधित माना जाता है इसलिए शादीशुदा लोगों के लिए इस रुद्राक्ष को धारण करना शुभ फलदायक होता है।
इससे वैवाहिक जीवन में तकरार की स्थिति नहीं बनती। प्रेम जीवन में अच्छे फल प्राप्त करने के लिए भी इस रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है। संतान प्राप्ति के लिए भी यह रुद्राक्ष सहायक है। विश्वदेव के स्वरूप में देखे जाने वाले तेरह मुखी रुद्राक्ष को पहनने वाले लोगों का भाग्य चमकने लगता है।
धारण करने की विधि-
- धारण करने से पूर्व तेरह मुखी रुद्राक्ष को गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करना चाहिए।
- इसके बाद धूप-दीप, अगरबत्ती और फूल अर्पित करके माँ लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
- इसके बाद शुक्र देव के मंत्र ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’ का जाप किया जाना चाहिए।
- आप रुद्राक्ष मंत्र ‘ॐ ह्रीं नम:’ का 108 बार पाठ भी कर सकते हैं।
- इस विधान को पूरा करने के बाद शुक्रवार के दिन तेरह मुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए।
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