मानव संस्कृति के चलन में आने के बाद से ही धर्मशास्त्रों के अाधार पर मनुष्य का जीवन अग्रसरित होता रहा है यह कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा देश धर्म प्रधान है और धर्म के बिना जीवन व्यर्थ है
श्री सूर्य देव की उपासना
धर्मेण हन्यते व्यधि, धर्मेण हन्यते ग्रह: ।
धर्मेण हन्यते शत्रुर्यतोधर्मस्ततो जय: ।।
अर्थात धर्म में इतनी शक्ति है कि धर्म सभी व्याधियों का हरण कर आपको सुखमय जीवन प्रदान कर सकता है । धर्म इतना शक्तिशाली है कि वह सभी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर कर सकता है । धर्म ही आपके सभी शत्रुओं का हरण कर उनपर आपको विजय दिला सकता है । अत: इसी प्रयास में आज आप लोगों को अपने शास्त्रों व ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण साधना सूर्य देव की साधना को बताने जा रहा हूँ । जो न सिर्फ अत्यन्त सरल है बल्की बहुत ही उपयोगी और प्रभावि है ।
रामायण में सूर्य देव की साधना
बाल्मीकि रामायण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार जब प्रभु श्रीराम रावण से युद्ध कर रहे थे तो रावण से श्री राम के सामना होने से पूर्ण देव लोक के सभी देवता अत्यन्त ही चिंतित थे, क्योंकि रावण कोई सामान्य योद्धा नही था। उसे जीतना तो दूर उसके साथ युद्ध में किसी देवता को एक पहर तक टिके रहना भी मुश्किल था। अत: ब्रह्मा जी ने स्वयं विश्वामित्र जी से निवेदन किया की वह लंका जाकर श्रीराम को सूर्यदेव की उपासना करने के लिए कहा और उन्हें आदित्यहृदयस्त्रोत्र का विधिपूर्वक पाठ व साधना करने की दीक्षा प्रदान करें, जिससे की श्रीराम जी युद्ध में रावण को जीत सकें। मतलब स्पष्ट है कि कठीन से कठीन युद्ध में विजय के लिए सूर्यदेव की साधना अत्यन्त ही कारगर है।
इसी रामायण में एक और प्रसंग है कि जब हनुमान जी इस धरती के सभी विद्याओं में पारंगत हो गये और इस संसार के सभी ज्ञानी महात्मा उनसे तर्क करने में पराजित होने लगा तो भगवान शिव के आज्ञा पर हनुमान जी अग्रणिय विद्या और ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान श्री सूर्यदेव के पास गये और उन्हें गुरू रूप में स्विकार कर वह ज्ञान प्राप्त किए जिसके बल पर हनुमान जी को विद्या और बुद्धि का निधान होने की उपाधि प्राप्त हुई।
महाभारत में सूर्य देव की साधना
- पहला: कर्ण जो कि सूर्यदेव का पुत्र था और कुंती ने उसे सूर्यदेव की उपासना करके ही प्राप्त किया था । कर्ण सूर्यदेव के आशीर्वाद से सूर्यदेव के शक्ति के साथ ऐसे कवच और कुंडल के साथ पैदा हुआ था, जिसके रहते कर्ण को इस ब्रह्मांड के किसी भी शक्ति से मारना संभव नही था । का ही उपासना भी करता था ।
- दूसरा: जब पांडव अपने वनवास काल में गरीबी के कारण पेटभर भोजन भी जुटा पाने में असमर्थ थे तो भगवान श्री कृष्ण नें उन्हे सूर्यदेव की उपासना कर अक्षयपात्र मांगने को कहा जिसके रहते वह सम्पूर्ण पृथ्वी को एक साथ करा सकते है ।
- तीसरा: एक बार सत्राजित ने भगवान सूर्य की उपासना करके उनसे स्यमन्तक नाम की मणि प्राप्त की। उस मणि का प्रकाश भगवान सूर्य के समान ही था। वह मणि नित्य उसे आठ भार सोना देती थी। जिस स्थान में वह मणि होती थी वहाँ के सारे कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते थे। इस मणि की और भी बहुत सी खासियत है यह जिसके पास होती है उसे कोई भी युद्ध में हरा नही सकता। यह मणि जहाँ होगी वहा कभी धन धान्य की कमी नही होगी। यह मणि जहाँ होगी वहाँ कभी सुखा या अकाल नही पड़ सकता। इस मणि के प्राप्ति के लिए ही श्रीकृष्ण को जामवन्त के पुत्री जामवन्ति से विवाह करना पड़ा था।
ग्रहों के राजा – सूर्य देव
ज्योतिष के अनुसार सूर्यदेव सभी ग्रहों में प्रथम् व सर्वश्रेष्ठ है यही कारण है कि उन्हें ग्रहों के राजा की उपाधि प्राप्त है। ज्योतिष में जिस प्रकार माता और मन के कारक चन्द्रमा है उसी प्रकार पिता और आत्मा का कारक सूर्य हैं। वेदों और उपनिषदों से लेकर हिन्दू-धर्म से संबंधित सभी धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य के महिमा का का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में कहा गया है — ( सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषश्च )
अत: यह पूर्णतः सिद्ध है कि यदि आप जीवन के हर युद्ध में विजय प्राप्त करना चाहते है, यदि आप अक्षुण लक्ष्मी व धन-धान्य पाना चाहते है, यदि आप अमित तेज व विद्याबुद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, यदि आप बल और तेज से युक्त निरोगी शरीर पाना चाहते हैं को आपको सूर्यदेव की उपसना करना चाहिए ।
सूर्य देव को अर्घ्य देने की विधि
शास्त्रों की मान्यता के अनुसार सूर्योदय के प्रथम किरण में सूर्यदेव को अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है। इसके लिए सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें। उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए। पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें। रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।
जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।
ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।
यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो। जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए। पुनः उसके बाद दोनों हाथो से जल और भूमि को स्पर्श करे और ललाट, आँख कान तथा गला छुकर भगवान सूर्य देव को एकबार प्रणाम करें।
सूर्योपासना का लाभ
- सूर्य देव को अर्घ्य देने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। छठ ब्रत में उगते हुए सूर्य को तथा अस्तांचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
- यदि आपके जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह नीच के राशि तुला में है तो अशुभ फल से बचने के लिए प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
- यदि सूर्य किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर सुबह स्थान में बैठा है तो सूर्योपासना करनी चाहिए।
- जिनकी कुंडली में सूर्यदेव अशुभ ग्रहो यथा शनि, राहु-केतु, के प्रभाव में है तो वैसे व्यक्ति को अवश्य ही प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए।
- यदि कारोबार में परेशानी हो रही हो या नौकरी में सरकार की ओर से परेशानी हो रही हो तो सूर्य की उपासना का लाभ मिलता है।
- यदि कोई ऐसी बीमारी हो गई है जो ठीक ही नही हो रही हो तो स्वास्थ्य लाभ के लिए भी सूर्य की उपासना करनी चाहिए।
- किसी भी प्रकार के चर्म रोग हो तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे शीघ्र ही लाभ होता है।
- सूर्य देव को जल अर्पण करने से सूर्यदेव की असीम कृपा की प्राप्ति होती है सूर्य भगवान प्रसन्न होकर आपको दीर्घायु , उत्तम स्वास्थ्य, धन, उत्कृष्ट संतान, मित्र, मान-सम्मान, यश, सौभाग्य और विद्या प्रदान करते हैं।
सूर्योपासना के समय मन्त्र
अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मन्त्र का अवश्य ही जप करना चाहिए। आप जल अर्पण करते समय स्वयं ही या अपने गुरु के आदेशानुसार मन्त्र का चयन कर सकते है।
सूर्यदेव के लिए निम्न मन्त्र है: सामान्यतः जल अर्पण के समय निम्न मंत्रो का जप करना चाहिए।
‘ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।ऊँ सूर्याय नमः।ऊँ घृणि सूर्याय नमः।‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।
इसके बाद सीधे हाथ की अँजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कना चाहिए। पुनः अपने स्थान पर ही तीन बार घुमकर परिक्रमा करना चाहिए ततपश्चात आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें। सूर्य देव के अन्य मन्त्र निम्न प्रकार से है:
सूर्य मंत्र – ऊँ सूर्याय नमः।
तंत्रोक्त मंत्र – ऊँ ह्यं हृीं हृौं सः सूर्याय नमः। ऊँ जुं सः सूर्याय नमः।
सूर्य का पौराणिक मंत्र
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।।
सूर्य गायत्री के दो मंत्र इस प्रकार हैं।
- ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्नः सूर्य प्रचोदयात् ।
- ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ।
मंत्र-विनियोग
ऊँ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनदः सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः।
मंत्र:
‘ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
रामायण में सूर्यदेव की उपासना का क्या व्यवरण है?
बाल्मीकि रामायण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार जब प्रभु श्रीराम रावण से युद्ध कर रहे थे तो ब्रह्मा जी ने स्वयं विश्वामित्र जी से निवेदन किया की वह लंका जाकर श्रीराम को सूर्यदेव की उपासना करने के लिए कहें।
महाभारत का महायोद्धा कर्ण किसका पुत्र था?
कर्ण सूर्यदेव का पुत्र था। सूर्यदेव की कृपा से ही उसे कवच और कुंडल प्राप्त थे।
सूर्यदेव को किस समय अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है?
शास्त्रों की मान्यता के अनुसार सूर्योदय के प्रथम किरण में सूर्यदेव को अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।
यदि सूर्यदेव दिखाई नहीं दे रहे है तो उनको अर्ध्य किस प्रकार दे?
यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं। आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।