“ललिता सहस्रनाम व्याख्या” नामक हमारी ब्लॉग श्रृंखला के दूसरे संस्करण में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला में मैं ललिता सहस्रनाम स्त्रोत्र में वर्णित 1000 नामों के के भावार्थ को स्पष्ट कर रहा हूँ।
पिछले ब्लॉग में हमने समझा:
- स्त्रोत्र शुरू करने से पहले ध्यान मंत्र का जाप और ध्यान करने का महत्व।
- ललिता सहस्रनाम के पहले ध्यान मंत्र का अर्थ भी समझा। इस ब्लॉग में हम दूसरे ध्यान मंत्र का भावार्थ समझेंगे।
ध्यान मंत्र 2
अरुणां करुणातरङ्गिताक्षींधृतपाशाङ्कुशपुष्पबाणचापाम् ।अणिमादिभिरावृतां मयूखै--रहमित्येव विभावये भवानीम् ॥
अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं
अर्थ: माँ ललिता के नेत्र आँखें प्रभात काल के सूर्य के समान अरुणिम वर्ण के हैं और करुणा की तरंगों से व्याप्त हैं।
स्पष्टीकरण: माँ के रक्तवर्ण, करुणा तरंगों से व्याप्त चक्षु माँ के भक्तों प्रति उनकी असीम ममता, करुणा और प्रेम को प्रकट करता है। इन नेत्रों का दर्शन करने से हम माँ की करुणा और प्रेम की तरंगों में प्रवाहित होने लगते हैं।
धृतपाशाङ्कुशपुष्पबाणचापाम्
अर्थ: माँ अपने चार कर कमलों में पाश, अंकुश, पंच पुष्प और गन्ना धारण करती हैं ।
स्पष्टीकरण: इनमें से प्रत्येक वस्तु ईश्वरीय नियंत्रण और सुरक्षा के एक विशिष्ट पहलू का प्रतीक है:
- पाश: यह हमारे कुविचारों पर नियंत्रण और दुर्वृत्तियों को नष्ट करने की क्षमता का प्रतीक है।
- अंकुश: यह हमारे जीवन में सभी प्रतिकूल प्रभावों और विघ्नों को समाप्त करने की शक्ति का प्रतीक है।
- पुष्पबाण: ये पाँच पुष्पबाण हमारी पाँच इंद्रियों और पाँच प्रमुख तत्त्वों पर नियंत्रण को रेखांकित करते हैं।
- चाप (गन्ने का धनुष): यह अनुशासित और निर्मल चित्त से उत्पन्न होने वाली मधुरता और प्रसन्नता को दर्शाता है।

अणिमादिभिरावृतां मयूखै-
अर्थ: भगवती माँ ललिता देवी तेजोमय प्रकाश और आठ सिद्धियों (शक्तियों) के घेरे से घिरी हुई हैं। व्याख्या: आठ सिद्धियों में शामिल हैं:
- अणिमा (सूक्ष्म होना),
- महिमा (विशाल होना),
- लघिमा (हल्का होना)
- गरिमा (भारी होना)
- प्राप्ति (कुछ भी प्राप्त करना)
- प्राकाम्य (इच्छाओं की पूर्ति)
- ईशित्व (प्रभुत्व)
- और वशित्व (नियंत्रण)
ये सिद्धियाँ उनके भक्तों को आध्यात्मिक शक्तियों से भी आशीर्वाद देती हैं।
अहमित्येव विभावये भवानीम्
अर्थ: मैं भवानी के इस दिव्य रूप का ध्यान करता हूँ, जो समस्त दिव्य गुणों का मूर्तिमान स्वरुप है।
स्पष्टीकरण: भगवती ललिता के दिव्य स्वरुप का ध्यान करने से भक्त उनकी अतिशय करुणा और प्रेम का अनुभव कर सकते हैं, और आठ सिद्धियों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। माँ ललिता के भक्त के लिए इस संसार में कुछ भी असाध्य नहीं हैं ।
माँ के दिव्य स्वरूप पर ध्यान
इस मंत्र पर ध्यान करते समय, माँ ललिता देवी के दिव्य स्वरूप का निम्नलिखित विधि से चिंतन आरम्भ करें ।
- माँ का श्री विग्रह प्रभात कालीन सूर्य के समान अरुणिम वर्ण का है और दिव्य कांति से युक्त है।
- माँ का मुखमण्डल तीन नेत्रों से सुशोभित हैं।
- माँ के नेत्रों से उनकी ममता और प्रेम की तरंगे प्रवाहित हो रही हैं और भक्तों के चित्त को आल्हादित कर रही हैं ।
- माँ के कर कमल में पाश अंकुश पंच पुष्प बाण सुशोभित हैं।
- उनके हाथों में पाश और अंकुश हमें आश्वस्त करते हैं कि हमारे आध्यात्मिक मार्ग में आने वाली सभी नकारात्मकता और बाधाएँ नियंत्रित और हटा दी जाएँगी।
- पंच पुष्प बाण इस बात का संकेत हैं की माँ के भक्तों की पांचों इन्द्रियाँ माँ पर ही केंद्रित रहती हैं।
- गन्ने का धनुष भक्ति रस सुधामृत से भरे हमारे मन का प्रतीक हैै।
जब हम अपने मन को माँ को समर्पित करते हैं, तो वह इसे प्रेम और आनंद से भर देती हैं, इसे गन्ने के रस की तरह मीठा बना देती हैं, सांसारिक नकारात्मकता से मुक्त कर देती हैं।
पाँच इंद्रियों की शक्ति
हमारी पाँचों इंद्रियाँ या तो हमें आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती हैं या हमें भौतिक उलझनों में घसीट सकती हैं। माँ ललिता अपने पुष्प बाणों से हमारी इन इंद्रियों को नियंत्रित करने में सहायता करती हैं और उन्हें अपनी और आकर्षित करती हैं:
- आँखें: उन्हें भौतिक विकर्षणों के स्थान पर ईश्वर या उनके भक्तों के स्वरुप को देखने के लिए प्रशिक्षित करें।
- कान: अपने कानों का उपयोग आध्यत्मिक प्रवचन, भजन, संत वाणी सुनने के लिए करें।
- जिह्वा:जिह्वा का उपयोग भगवान के गुण लीला नाम का कीर्तन करने के लिए और उनका प्रसाद पाने के लिए करें।
- नाक: भगवान को अर्पित पवित्र धूप, फूल आदि की सुगंध को ग्रहण करें।
- स्पर्श: पवित्र स्थानों, वस्तुओं और लोगों की पवित्रता को स्पर्श करें।
अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके, माँ ललिता हमें भौतिक अस्तित्व से परे जाने और आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने में सहायता करती हैं।
मन और गन्ना धनुष
गन्ने का धनुष मन की प्रकृति को दर्शाता है। जिस तरह गन्ना मीठा होता है, उसी तरह देवी माँ को समर्पित मन मीठे, आनंदमय विचारों से भरा होता है। ललिता देवी की उपस्थिति हमारे मन को शुद्ध करती है तथा नकारात्मकता के स्थान पर दिव्य आनंद और संतोष से व्याप्त कर देती है।
निष्कर्ष
आशा है कि माँ ललिता का यह ध्यान मंत्र आपको उनके दिव्य स्वरुप के निकट ले जाएगा। अपने दिव्य गुरुओं बाबा भूतनाथ जी, परमहंस निखलेश्वरानंद जी और स्वामीजी दिव्यचेतनानंद जी के चरणों में प्रार्थना करते हुए मैं उनके चरणों में प्रणाम करता हूँ ।