ललिता सहस्रनाम माँ ललिता का श्री मुख | श्लोक 4–8 | ललिता सहस्रनाम (भाग 6)

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श्लोक 4

चम्पकाशोक पुन्नाग सौगन्धिक लसत्कचा
कुरुविन्द मणिश्रेणी कनत्कोटीर मण्डिता ॥ 4 ॥

  • चम्पकाशोक पुन्नाग सौगन्धिक लसत्कचा — वह जिनके केश चम्पक, अशोक और पुन्नाग के सुगंधित पुष्पों से विभूषित हैं।
  • कुरुविन्द मणिश्रेणी कनत्कोटीर मण्डिता — कुरुविंद मणियों की ज्योतिर्मयी श्रेणियों से जटित मुकुट से सज्जित।

व्याख्या: यह श्लोक माँ ललिता केशों का वर्णन कर रहा है। माँ के केश चम्पक, अशोक और पुन्नाग जैसे सुगंधित फूलों से सजाए गए हैं और चमक रहे हैं। उनके मस्तक पर लाल कुरुविंद मणियों से बना मुकुट है, जो उनकी दिव्य और भव्य उपस्थिति को बढ़ाता है।

श्लोक 5

अष्टमी चन्द्र विभ्राज दलिकस्थल शोभिता ।
मुखचन्द्र कलङ्काभ मृगनाभि विशेषका ॥ 5 ॥

  • अष्टमी चन्द्र विभ्राज दलिकस्थल शोभिता— जिनका मस्तक अष्टमी के चन्द्रमा से शोभित है।
  • मुखचन्द्र कलङ्काभ मृगनाभि विशेषका — जिनके मुख पर चन्द्रमा के कलङ्क के समान कस्तूरी सुशोभित है।

व्याख्या: इस श्लोक में माँ के मस्तक की तुलना अष्टमी के चन्द्रमा से की गई है, जो इसकी सुंदरता और शांति को दर्शाता है। उनके मस्तक पर कस्तूरी तिलक है, जिसकी तुलना चन्द्रमा के कलंक से की गई है, जो उनकी दिव्य सुंदरता और अनुग्रह को उजागर करता है।

श्लोक 6

वदनस्मर माङ्गल्य गृहतोरण चिल्लिका ।
वक्त्रलक्ष्मी परीवाह चलन्मीनाभ लोचना ॥ 6 ॥

  • वदनस्मर माङ्गल्य गृहतोरण चिल्लिका — मांँ के भौहें गृह के तोरण के समान सुंदर हैं।
  • वक्त्रलक्ष्मी परीवाह चलन्मीनाभ लोचना — लावण्य की लक्ष्मी की धारा में प्रवाहित मीन के समान नेत्रों वाली ||

व्याख्या: यह श्लोक माँ के मुख की विशेषताओं का काव्यात्मक वर्णन करता है। उनकी भौंहें सुन्दरता के गृह के तोरण के समान हैं, जो उनकी पूर्णता और अनुग्रह को दर्शाता है। उनके नेत्रों की तुलना सुन्दरता की धारा में तैरती मछलियों से की गई है, जो जीवंतता, अभिव्यक्ति और आकर्षण से भरपूर हैं और अपने भक्तों को देखते हैं।

श्लोक 7

नवचम्पक पुष्पाभ नासादण्ड विराजिता ।
ताराकान्ति तिरस्कारि नासाभरण भासुरा ॥ 7 ॥

  • नवचम्पक पुष्पाभ नासादण्ड विराजिता — नव चम्पक पुष्प के समान नासिका दण्ड से शोभित |
  • ताराकान्ति तिरस्कारि नासाभरण भासुरा — तारों की चमक को तिरस्कृत करने वाले नासिका आभूषण से उज्ज्वल ||

व्याख्या: यह श्लोक माँ की नासिका का वर्णन करता है, जो चम्पक फूल की कली के समान नासादंड से सज्जित है।उनके नासिका आभूषण कि द्युति तारों की को भी मात देती है, जो उनके दिव्य और उज्ज्वल सौंदर्य को दर्शाता है।

श्लोक 8

कदम्ब मञ्जरीकॢप्त कर्णपूर मनोहरा ।
ताटङ्क युगलीभूत तपनोडुप मण्डला ॥ 8 ॥

  • कदम्ब मञ्जरीकॢप्त कर्णपूर मनोहरा — जिनके कर्ण कदम्ब मंजरी से निर्मित बाली से सजे हैं।
  • ताटङ्क युगलीभूत तपनोडुप मण्डला — युगल रूप में सूर्य और चंद्रमा के मण्डल जिनके कानों के ताटंक हैं।

व्याख्या — इस श्लोक में माँ को कदम्ब फूलों से सजे हुए कानों के साथ वर्णित किया गया है। इसके अतिरिक्त, उनके कानों के आभूषणों की तुलना सूर्य और चंद्रमा से की गई है, जो उनकी भव्यता और सुंदरता को उजागर करते हैं, और ब्रह्मांड की संतुलन और समरसता को दर्शाते हैं।

सारांश

ये सबी श्लोक सामूहिक रूप से माँ ललिता की मनमोहक सुंदरता और श्रृंगार का एक विशद चित्र प्रस्तुत करते हैं। उनके केश सुगंधित चंपक, अशोक और पुन्नाग फूलों से भूषित हैं, और उनके माथे पर लाल कुरुविंद रत्नों का मुकुट सुशोभित है।

उनका माथा आठवें चंद्र दिवस के अर्धचंद्र जैसा दिखता है और उस पर कस्तूरी तिलक चंद्रमा के कलंक जैसा है। उनकी भौहें सुंदरता को समर्पित एक गृह के तोरण के समान हैं और उनकी आँखें जीवंत और अभिव्यंजक हैं, जैसे कि सुंदरता की धाराओं में तैरती हुई मछली।

उनकी नाक चंपक कली की तरह सुडौल है और इसे एक आभूषण द्वारा और भी सुशोभित किया गया है जो सितारों को मात देता है। अंत में, वह अपने कानों में कदंब के फूल पहनती हैं और उनकी बालियों की तुलना सूर्य और चंद्रमा से की जाती है, जो भव्यता और संतुलन का प्रतीक हैं। ये वर्णन सामूहिक रूप से उनकी दिव्य का वर्णन करते हैं।

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फिर मिलेंगे चलते चलते

इसके साथ ही हम इस ब्लॉग का समापन करते हैं। 

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