श्लोक 1
श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी ।चिदग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता ॥ १ ॥
- श्री माता — समस्त ब्रह्माण्डों की माँ।
- श्रीमहाराज्ञी — ब्रह्मांड की सर्वोच्च साम्राज्ञी।
- श्रीमत्सिंहासनेश्वरी— वह जो सिंह के सिंहासन पर विराजमान हैं।
- चिदग्निकुण्डसम्भूता— जिनका प्रादुर्भाव चित्त रुपी हुआ है।
- देवकार्यसमुद्यता— वह जो दिव्य गतिविधियों को बढ़ावा देने और देवताओं को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए प्रकट हुई है।
व्याख्या: यह श्लोक भगवती ललिता की स्तुति ब्रह्मांड की सर्वोच्च माता और महासम्राज्ञी के रूप में करता है, जो सिंह के सिंहासन पर विराजमान हैं। माँ का प्रादुर्भाव शुद्ध चित्त रुपी अग्नि से देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए हुआ है ।

श्लोक 2
उद्यद्भानुसहस्राभा चतुर्बाहुसमन्विता ।रागस्वरूपपाशाढ्या क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला ॥ २ ॥
- उद्यद्भानुसहस्राभा — जिसकी आभा हजारों उदित सूर्यों की प्रभा को भी लज्जित कर दे।
- चतुर्बाहुसमन्विता — चार कर कमल से सुशोभित।।
- रागस्वरूपपाशाढ्या— जो अपने एक हाथ में पाश धारण करती हैं। यह पाश प्रेम और आसक्ति का प्रतीक है।।
- क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला — जो देवी अपने एक करकमल में अंकुश धारण करती हैं। इस अंकुश से भगवती अपने भक्तों की नकारत्मकता पर नियंत्रण करती हैं।
व्याख्या: यह श्लोक देवी की अरुणिम आभा का वर्णन करता है, जो हज़ारों उगते सूर्यों से भी अधिक है। उन्हें चार हाथों से एक में पाश और एक अंकुश है। पाश उनके और प्रेम की शक्ति और अंकुश नकारात्मकता को नियंत्रित कर प्रतिबंधित करने की क्षमता का प्रतीक है।
श्लोक 3
मनोरूपेक्षु-कोदण्डा पञ्चतन्मात्र-सायका ।निजारुण-प्रभापूर-मज्जद्ब्रह्माण्ड-मण्डला ॥ ३॥
- मनोरूपेक्षु-कोदण्डा— जो देवी अपने हाथ में गन्ने रुपी धनुष को धारण करती हैं। यह धनुष मिठास से भरे भक्तों के मन का प्रतीक है।
- पञ्चतन्मात्र-सायका — वह पंचपुष्प रुपी बाण धारण किए हुए हैं, जो पांच इंद्रियों के विषयों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें पंच तन्मात्रा कहा जाता है।
- निजारुण प्रभापूर मज्जद्ब्रह्माण्डमण्डला — उनकी दिव्य रक्तवर्ण आभा ने समस्त ब्रम्हांड को अरुणिम प्रभा से सराबोर कर दिया है।
व्याख्या: इस श्लोक में देवी को गन्ने का धनुष धारण करते हुए दिखाया गया है, जो भक्तों के प्रेम पूरित मन का प्रतीक है, और पंच पुष्प बाण हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियों के पंच विषयों का प्रतीक हैं। उनकी दीप्तिमान आभा पूरे ब्रह्मांड को अरुणिम आभा में डुबो देती है।

इन तीन श्लोकों में हमने देवी के प्रादुर्भाव, उनकी आभा और उनके चार करकमलों का वर्णन पढ़ा है।