ध्यान मन्त्र 3
ध्यायेत्पद्मासनस्थां विकसितवदनां पद्मपत्रायताक्षींहेमाभां पीतवस्त्रां करकलितलसद्धेमपद्मां वराङ्गीम् ।सर्वालङ्कारयुक्तां सततमभयदां भक्तनम्रां भवानींश्रीविद्यां शान्तमूर्तिं सकलसुरनुतां सर्वसम्पत्प्रदात्रीम् ॥
ध्यायेत् पद्मासनस्थां:
- अर्थ: भगवती ललिता का पद्मासन स्थित मुद्रा में ध्यान करें। माँ की यह मुद्रा स्थिरता, पवित्रता और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है।
- व्याख्या: पद्मासन केवल एक शारीरिक मुद्रा नहीं है, यह एक भक्त के मन की आदर्श स्थिति का प्रतीक है — जैसे एक कमल का फूल। जिस प्रकार कमल कीचड़ से निकलकर भी शुद्ध रहता है, वैसे ही भक्त का मन सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर पवित्र और स्थिर हो जाता है। यह शुद्ध और स्थिर मन ही माँ ललिता का निवास स्थान बनता है।
विकसितवदनां:
- अर्थ: उनका मुख पूर्ण विकसित कमल पुष्प के समान है, जो उनके सौंदर्य और करुणा को प्रकट करता है।
- व्याख्या: माँ ललिता का तेजस्वी मुख अपने भक्तों के मन और जीवन को ज्ञान, प्रेम, आनंद और आध्यात्मिक प्रबोधन की सुंदरता से प्रकाशित करता है।
पद्मपत्रायताक्षीं:
- अर्थ: माँ के नेत्र कमलदल के समान कर्णान्त दीर्घ और सुंदर हैं।
- व्याख्या: कमलदल के समान उनके नेत्र दिव्यता, और शांति का प्रतीक हैं। ये आंखें भक्तों के लिए आश्रय और सांत्वना का स्रोत हैं।
हेमाभां पीतवस्त्रां:
- अर्थ: देवी स्वर्णिम आभा से विभूषित हैं और उन्होंने पीताम्बर धारण किया हुआ है।
- व्याख्या: माँ की स्वर्णिम प्रभा उनके दिव्य स्वरूप और अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक है। यह भक्तों को आध्यात्मिक संपन्नता और ऐश्वर्य की बोध कराती है।पीत वर्ण ज्ञान, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि देवी अपने भक्तों को ज्ञान और समृद्धि प्रदान करती हैं।
करकलितलसद्धेमपद्मां वराङ्गीम्:
- अर्थ: उनके हस्त में स्वर्णकमल सुशोभित है। उनके अंग सुंदर हैं।
- व्याख्या: भगवती के कर में विराजमान स्वर्ण कमल पवित्रता और ऐश्वर्य का प्रतीक है। यह माँ के भक्तों को कृपा और भौतिक समृद्धि दोनों का आशीर्वाद देता है। देवी के सुंदर अंग उनकी पूर्णता और दिव्यता का प्रतीक हैं। यह भक्तों को आकर्षित करता है और उन्हें आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है।
सर्वालङ्कारयुक्तां सततमभयदां:
- अर्थ: माँ समस्त आभूषणों से सुसज्जित हैं और सदैव अभय प्रदान करती हैं।
- व्याख्या: माँ के आभूषण उनके ऐश्वर्य और वैभव का प्रमाण हैं। माँ अपने भक्तों को सब प्रकार की सुरक्षा और आश्रय प्रदान करती हैं। माँ अपने भक्तों के भय का नाश कर देती हैं ।
भक्तनम्रां भवानीं:
अर्थ: वह भक्तों के प्रति नम्र हैं।वह भवानी (शिव की पत्नी) हैं
व्याख्या:देवी अपने भक्तों के प्रति करुणा और प्रेम से भरी हुई हैं। वह उनके प्रति सदा दयालु और नम्र रहती हैं।भवानी के रूप में, वह शक्ति और चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह अपने भक्तों का मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करती हैं।

श्रीविद्यां शान्तमूर्तिं:
- अर्थ: वह श्री विद्या है और वह शांति स्वरूपा हैं।
- व्याख्या: श्री विद्या के रूप में, वह ज्ञान और समृद्धि की देवी हैं। वह अपने भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की संपत्ति प्रदान करती हैं।उनका शांत स्वरूप शांति और संतुलन का प्रतीक है। यह भक्तों को आंतरिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।
सकलसुरनुतां सर्वसम्पत्प्रदात्रीम्:
- अर्थ: वह सभी देवताओं द्वारा वंदित हैं और सभी प्रकार की संपत्ति देने वाली हैं।
- व्याख्या: सभी देवता उनकी महिमा का गुणगान करते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं। देवी अपने भक्तों को हर प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक संपत्ति प्रदान करती हैं। वह उनकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
समग्र भावार्थ:
यह श्लोक देवी की महिमा का वर्णन करता है। हमें ध्यान करना चाहिए उस देवी का जो पद्मासन में विराजमान हैं, जिनका मुख खिला हुआ है, जिनकी आंखें कमल के पत्ते जैसी हैं। वह सोने जैसी चमकती हैं, पीले वस्त्र धारण करती हैं, और जिनके हाथ में सोने का कमल है। उनके अंग सुंदर हैं, वह सभी आभूषणों से सुसज्जित हैं। वह सदैव अपने भक्तों को अभय देती हैं और भक्तों के प्रति नम्र हैं। वह श्री विद्या की मूर्ति हैं, जिनका स्वरूप शांत है, और जो सभी देवताओं द्वारा वंदित हैं। वह सभी प्रकार की संपत्ति देने वाली हैं।